विश्व प्रसिद्ध पाताल भुवनेश्वर में भगवान गणेश का कटा हुआ धड़ विराजमान है- माँ पार्वती के अनुरोध पर भगवान शिव ने कमल दल से अभिषेक कर गणेश जी का सिर जोड़ा था- स्कंद पुराण के मानसखंड में पाताल भुवनेश्वर का उल्लेख है:- 10 सितम्बर को गणेश चतुर्थी पर गणेश जी का जन्मदिन मनाया जाएगा-

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हमारे संवाददाता:- हरगोविन्द रावल की रिपोर्ट
गंगोलीहाट। विश्व प्रसिद्ध पाताल भुवनेश्वर जो कि गंगोलीहाट से 14 किलोमीटर की दूरी पर विराजमान हैं जहाँ गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर पर देश विदेश सहित क्षेत्रीय लोगो का भगवान गणेश के दर्शनों को तांता लगता हैं इस वर्ष गणेश चतुर्थी का पावन पर्व 10 सितंबर को हैं। भगवान गणेश का पाताल भुवनेश्वर से जुड़े होने का वृतांत स्कंद पुराण के अंतर्गत मानसखंड में पाताल भुवनेश्वर का विशेष महत्व आता है। बताते चले कि गणेश जी का कटा हुआ धड़ इसके बारे में पुराणों में एक कथा आती है जब मां पार्वती स्नान करने गई तो उन्होंने किसी को स्नान ग्रह में प्रवेश न करने देने हेतु गणेश जी को द्वारपाल नियुक्त किया। उसी समय शिव के वहां पहुंचने पर और उनको अंदर प्रवेश न करने देने पर शिव ने क्रोधित होकर गणेश जी का सिर काट लिया था तो पार्वती के अनुरोध पर शिव ने कमल दल से अभिषेक कर गणेश जी को जीवित रखा फिर गणेश जी के धड़ पर हाथी का सिर जोड़ा गया ऐसा पुराणों में उल्लेख है ।

और उक्त जगह पर पाताल भुवनेश्वर में आज भी ब्रह्मकमल से गणेश जी के कटे हुए धड़ पर अमृत जल टपकता रहता है। पाताल भुवनेश्वर एक ऐसा स्थान है जहां पर गणेश जी का धड़ से सिर जुड़ा, यह स्थान भगवान शिव का शल्य कक्ष भी माना जाता हैं।इसी स्थान पर भगवान शिव ने गणेश जी के सिर को जोड़ा इसका पुराणों में उल्लेख आता है कि गणेश जी का जो सिर है वह पवित्र कैलाश से लाया गया क्योंकि पाताल भुवनेश्वर का सीधा नाता पवित्र कैलाश मानसरोवर से है।इस पाताल से अनेकों रमणीक गुफाएं अंदर ही अंदर सारे धामों को एक दूसरे से जोड़ती हैं। इसी पाताल से कैलाश को मार्ग जाता है और पाताल से ही बद्रीनाथ व काशी विश्वनाथ तथा केदारनाथ को भी मार्ग जाता है। आज भी पाताल भुवनेश्वर में भगवान शंकर द्वारा गणेश जी का कटा हुआ धड़ मौजूद है जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण पाताल के अंदर जाने पर देखने को मिलता है।

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