संंवैधानिक व्यवस्था की अनदेखी से सरकार की भूमिका पर उठ रहे सवाल
रमेश चन्द्र पाण्डे
हल्द्वानी – उत्तरााण्ड लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित पटवारी भर्ती परीक्षा का पेपर लीक होने से उत्पन्न जनाक्रोश के बीच अब लोक सेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति में संंवैधानिक व्यवस्था की अनदेखी होने से सरकार की भूमिका पर भी सवाल उठ गये हैं ।
लोक सेवा आयोग में सदस्यों की कुल निर्धारित संख्या 06 है । बर्तमान में 5 भरे हैं ,01 रिक्त है । संंविधान में राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्य का कार्यकाल 06 वर्षं या 62 वर्ष की आयु जो भी पहले हो, निर्धारित है ।
संंविधान के अनुच्छेद 316 में उल्लिखित है कि लोक सेवा आयोग के सदस्यों में से यथाशक्य निकटतम आधे ऐसे व्यक्ति होंगे जो अपनी अपनी नियुक्ति की तारीख पर भारत सरकार या राज्य की सरकार के अधीन कम से कम 10 वर्षं तक पद धारण कर चुके हों l
उक्त संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार कुल 06 सदस्यों में से तीन पर ऐसे व्यक्तियों की तैनाती होनी चाहिए थी जिन्हें केन्द्र अथवा राज्याधीन सेवा में 10 वर्ष का अनुभव हो लेकिन बर्तमान में तैनात 05 सदस्यों में से कोई भी संविधान में उल्लिखित उक्त अर्हता नहीं रखते है । आयोग में तैनात 5 सदस्यों में से अकादमिक अनुभव वाले 02 प्रोफेसर (यूनिवर्सिटी के) 01 असिस्टेंट प्रोफेसर (निजी यूनिवर्सिटी से) 01- वैज्ञानिक और 01- नान प्रैक्टिस अधिवक्ता हैं ।
संविधान में सदस्यों के कुल में से आधे पदों पर नियुक्ति के लिए रखी गई उक्त अनिवार्य अर्हता की व्याख्या में इसका मूल आशय प्रशासनिक अनुभव से है ताकि आयोग में सम्पादित होने वाले प्रशासनिक कार्यों में किसी प्रकार की चूक ना हो ।
पटवारी भर्ती की परीक्षा में पेपर लीक की जो आपराधिक घटना घटित हुई उसकी प्रमुख वजह प्रशासनिक लापरवाही रही है और इसी वजह से आयोग में प्रशासनिक क्षमता के अभाव के कारणो की खोज करते हुए उनका ध्यान इस ओर गया ।
आयोग के सदस्यों की नियुक्ति में संवैधानिक व्यवस्था को दरकिनार किये जाने से अब उत्तराखण्ड सरकार भी सवालों के कटघरे में आ खड़ी हुई है । इससे आम जनमानस की समझ में यह आ गया है कि सरकार द्वारा बबूल के पेड लगाकर आम खिलाने के जो सपने दिखाये जा रहे हैं वो कभी पूरे होने वाले नहीं हैं ।
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संपादक – फास्ट न्यूज़ उत्तराखण्ड
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