पत्नी ने अलग हुए पति से गर्भधारण करने के लिए पत्नी ने सहयोग मांगा, न्यायालय ने तलाक कार्यवाही पर रोक लगाई

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नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने एक-दूसरे से अलग हुए पति-पत्नी के बीच तलाक की कार्यवाही पर रोक लगा दी है, क्योंकि पत्नी ने ‘इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन’ (आईवीएफ) प्रक्रिया के माध्यम से गर्भधारण करने के लिए अपने पति से सहयोग मांगा है और इसके लिए वह उसका शुक्राणु चाहती है।  महिला ने अपने पति द्वारा भोपाल में दायर तलाक के लंबित मामले को लखनऊ स्थानांतरित करने का आग्रह करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया है, जहां वह वर्तमान में अपने माता-पिता के साथ रह रही है। मामले को दूसरी जगह स्थानांतरित करने के आग्रह वाली याचिका न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई, जो मामले पर सुनवाई के लिए सहमत हो गए। पीठ ने एक दिसंबर के अपने आदेश में कहा, ”दोनों पक्षों के बीच तलाक की याचिका परिवार अदालत, भोपाल में लंबित है।

याचिकाकर्ता-पत्नी लखनऊ में रहती है और चाहती है कि मामले को लखनऊ स्थानांतरित किया जाए। नोटिस (पति को) जारी किया जाए और छह सप्ताह के भीतर इसका जवाब दिया जाए। ” पीठ ने कहा, इस बीच, प्रमुख न्यायाधीश, परिवार अदालत, भोपाल, मध्य प्रदेश में लंबित (तलाक मामले) में आगे की कार्यवाही पर रोक रहेगी। शीर्ष अदालत में महिला की ओर से वकील असद अल्वी पेश हुए। याचिका में 44 वर्षीय महिला ने कहा कि उन्होंने (दंपति) नवंबर 2017 में शादी की थी और बार-बार अनुरोध के बावजूद, उसके पति ने पिता बनने में देरी के लिए अपनी बेरोजगारी का बहाना बनाया।

महिला ने कहा कि लगातार अनुरोध के बाद, इस साल मार्च में उसके आईवीएफ के माध्यम से बच्चा जन्मने के प्रति उसका पति सहमत हो गया। इसके बाद दंपति ने विभिन्न चिकित्सा परीक्षण कराए और एक डॉक्टर की देखरेख में आवश्यक दवाएं लेनी शुरू कर दीं। वकील ऐश्वर्य पाठक के माध्यम से दायर याचिका में दावा किया गया है, ”हालांकि याचिकाकर्ता को तब झटका लगा जब प्रतिवादी (पति) ने अचानक तलाक के लिए मामला दायर कर दिया…जबकि आईवीएफ उपचार जारी था। उसने याचिकाकर्ता के साथ सभी संपर्क तोड़ दिए, उसकी कॉल ब्लॉक कर दीं और उसे भावनात्मक रूप से परेशान कर दिया। ”लंबित तलाक के मामले को लखनऊ स्थानांतरित करने का आग्रह करते हुए याचिका में कहा गया है कि महिला को उसके ससुराल के घर से निकाल दिया गया तथा उसे भोपाल में अपनी पैरवी करने में महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि वह उत्तर प्रदेश की राजधानी में अपने माता-पिता के साथ रह रही है। याचिका के साथ, उसने एक आवेदन भी दायर किया है जिसमें उसने अपने पति को यह निर्देश दिए जाने का आग्रह किया है कि वह आईवीएफ प्रक्रिया में याचिकाकर्ता और चिकित्सकों के साथ सहयोग करे तथा जब भी जरूरत हो या आईवीएफ चिकित्सकों द्वारा सलाह दी जाए तो शुक्राणु और अन्य सहयोग प्रदान करे।

याचिका में कहा गया है कि शादी के बाद पुरुष ने अपनी बेरोजगारी का खुलासा किया और महिला से अस्थायी रूप से अपने माता-पिता के साथ रहने का अनुरोध किया। महिला ने याचिका में कहा है, ”उसने मुझे आश्वासन दिया कि जब उसे स्थायी रोजगार मिलेगा तो वह अपने बच्चे का पिता बनेगा।” याचिकाकर्ता ने कहा कि बाद में उसे रोजगार मिल गया। याचिका में कहा गया है, …बड़े अनुनय-विनय के बाद प्रतिवादी पत्नी द्वारा अपने बच्चे के जन्म देने पर सहमत हो गया। क्योंकि याचिकाकर्ता की उम्र लगभग 44 वर्ष है और वह रजोनिवृत्ति के कगार पर है, चिकित्सक ने उन्हें 45/46 वर्ष की उम्र पूरी करने से पहले आईवीएफ प्रक्रिया द्वारा बच्चा पैदा करने की सलाह दी। दोनों इस पर सहमत हो गए और आईवीएफ प्रक्रिया से गुजरने के लिए इलाज कराना शुरू कर दिया।

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