पहाड़ों की बरातों में फिर से लौटा छोलिया नृत्य, बैंड हुआ गुम-

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गंगोलीहाट

बाराती के सीजन में अच्छा पैसा कमा लेते हैं पहाड़ी कलाकार ।

हरगोविंद रावल
पहाड़ों में सन दो हजार के दशक में छोलिया नृत्य लुप्त हो गया था उस दौर में पहाड़ों में होने वाली बारातों में हर जगह बैंड ही बजता था । और पहाड़ के मुख्य छोलिया नृत्य से लोगों ने दूरी बना ली जिससे पहाड़ के छोलिया कलाकारों में अपने रोजगार को लेकर चिंता सताने लगी थी लेकिन दिल्ली , लखनऊ , देहरादून व हल्द्वानी जैसे महानगरों में प्रवासियों ने बरातों में पहाड़ी छोलिया कलाकारों को बुलाते हुए छोलिया नृत्य को महत्व दिया।

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तो वही पहाड़ों में होने वाले महोत्सव में छोलियो को महोत्सव समिति के लोगों ने पूर्ण स्थान दिया जिससे पहाड़ के लोग धीरे धीरे छोलिया नृत्य की ओर पुनः रुख करने लगे । लगभग विगत 5 वर्षों से पहाड़ में बैंड लुप्त हो गया है ।इधर गंगोलीहाट के पाली , डमडे , चमाली, कडाराछीना व बुरसुम गांव के प्रसिद्ध छोलिया पहाड़ के अलावा महानगरों में भी अपना जलवा बिखेर रहे हैं साथ ही उक्त कला से जुड़े लोगों को अच्छा रोजगार मिल रहा है । सरकार ने छोलिया व ढोल दमाऊ वालों को उत्साहित करने के लिए जरूर सोचना चाहिए ।

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