देवभूमि उत्तराखण्ड राज्य और देववाणी संस्कृत –

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एसआर चंद्रा

भिकियासैंण। देवभूमि उत्तराखंड का अपना प्राकृतिक ,आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व वैदिक काल से ही रहा है। अपौरुषेय- कृति वेदों की रचना और ऋषि-मुनियों द्वारा वेदों के भाष्य , उपनिषदग्रन्थ , आरण्यक ग्रन्थ की रचनास्थली देवभूमि उत्तराखण्ड ऋषि-मुनियों की तपो भूमि रही है । सनातन धर्म का पल्लवित-पुष्पित स्वरूप यहाँ के तीर्थों और देवालयों में फलित हुआ है।गंगोत्री – यमुनोत्री-केदारनाथ-बद्रीनाथ चारों धामों और शक्तिपीठों में साक्षात विराजमान देवावतार इस केदारखण्ड हिमवत्क्षेत्र में आज भी आस्तिकजनों के लिए श्रद्धा के केंद्र हैं।

भारतीय संस्कृति और संस्कृत भाषा का विशुद्ध स्वरूप इसी प्रान्त से विकसित हुआ है। सनातन जनमानस के आध्यात्मिक ज्ञान का प्रसार यहीं से हुआ है। इन्हीं विशेषताओं के कारण भारत सहित अखिल विश्व में फैले सत्य- सनातनोपासक उत्तराखण्ड में शांति की खोज और प्राप्ति के लिए यहाँ आते हैं। इन्ही जनभावनाओं को दृष्टिगत रखते हुए उत्तराखण्ड की भाजपानीत सरकार ने वर्ष 2010 में देववाणी संस्कृत को द्वितीय राजभाषा के रूप में मान्यता प्रदान की। तबसे संस्कृत के प्रचार प्रसार के अनेकानेक कार्य हुए।जैसे संस्कृत मंत्रालय, संस्कृत अकादमी, संस्कृत निदेशालय ,संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना आदि। संस्कृत विद्यालयों के लिए संस्कृत परिषद आदि। किन्तु दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य सरकार द्वारा संचालित 95% राजकीय और अशासकीय हाई स्कूल और इंटर कालेज संस्कृत शिक्षक विहीन हैं। इन विद्यालयोँ में संस्कृत शिक्षकों के पद सृजित करने के लिए हिंदी-संस्कृत शिक्षण मञ्च प्रयासरत है। राज्य में कुल 2480 राजकीय और अशासकीय इण्टर कॉलेजों के सापेक्ष प्रवक्ता संस्कृत के 1056 ही पद स्वीकृत हैं । इसी प्रकार राज्य में कुल 1353 राजकीय और अशासकीय हाईस्कूलों और 2480 इंटरमीडिएट कॉलेजों में 3833 एल टी संस्कृत पदों के सापेक्ष केवल 485 पद ही सृजित हैं। जिन विद्यालयों में शिक्षकों के पद ही सृजित नहीं हैं ,वहाँ असंगत विषयों कला – व्यायाम आदि के शिक्षकों से संस्कृत पढ़ाने का कार्य लिया जाता है।

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जिससे छात्रों को सही विषय ज्ञान ही नहीं मिल पा रहा है। इस समस्या के समाधान के लिए 2021 में शिक्षा निदेशक महोदय को 13 जनपदों से मुख्यशिक्षाधिकारी के माध्यम से ज्ञापन दिए गए। , माननीय पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत , शिक्षामन्त्री,अन्य मंत्रियों और विधायकों को भी ज्ञापन दिए गए हैं। विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष माननीय विधायक करन माहरा को भी बड़ी उम्मीदों के साथ ज्ञापन दिया गया था, किन्तु कोई सफलता और समाधान नहीं निकल पाया है। वर्तमान में शिक्षा महानिदेशक श्रीमान बंशीधर तिवारी ,अपर निदेशक श्रीमान शिव प्रसाद खाली को भी शिक्षकों के पदसृजन के विषय में माँगपत्र दिए गए हैं । दिनांक 30 सितम्बर को प्रान्तीय संरक्षक पी सी तिवारी , प्रान्त संयोजक बी0 डी0 शर्मा और डॉ0 दीपक नवानी ने माननीय मुख्यमंत्री से मिलकर एक श्रीमद्भगवद्गीता भेंट कर शिक्षकों के पदसृजन के लिए माँगपत्र दिया है।माँगपत्र में प्रवक्ताओं के पदसृजन कर एल टी से पदोन्नतियाँ करने और एल टी के पदसृजन कर अतिथि शिक्षकों या सीधी भर्ती के द्वारा नियुक्तियाँ करने की मांग प्रमुखता से रखी गई है।अपर निदेशक और महानिदेशक महोदय ने विषय को अति गम्भीरता से उचित कार्यवाही करने का आश्वासन दिया है।

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माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों के पदसृजन और समुचित शिक्षण व्यवस्था के बिना द्वितीय राजभाषा की बात कोरी साबित होगी। आशा है यशस्वी मुख्यमंत्री इस समस्या का शीघ्र समाधान निकालने का सार्थक प्रयास करेंगे।सभी का मानना है कि भारतीय संस्कृति और संस्कृत के बिंना उत्तराखण्ड राज्य का उत्थान सम्भव नहीं है।सभी भारतीयों को इस भाषा के उन्नयन के लिए सदैव प्रयास रत रहना होगा।

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