37साल के राजनैतिक सफर मे ऐरी पहली बार नही लड़ेंगे चुनाव-

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अस्कोट : महेश पाल

पहली बार 1973 मे छात्र राजनीति से शुरु किया सफर-

  • 1979 मे डी.डी.पंत से प्रभावित हो कर राज्य आन्दोलन मे उतरे और यूकेडी के अहम संस्थापक बने_

उत्तराखण्ड राज्य निर्माण मे अहम भूमिका निभाने वाले और राज्य निर्माता उत्तराखण्ड क्रांति दल के वर्तमान मे केन्द्रीय अध्यक्ष काशी सिह ऐरी ने अपने पचास वर्षो के राजनैतिक सफर मे पहली बार चुनाव नही लड़ने का फैसला किया है।
धारचूला के पंतागांव मे जन्मे ऐरी ने अपनी राजनीति की शुरुवात पिथौरागढ़ महाविद्यालय मे उपाध्यक्ष पद से की थी और डी.डी.पंत के विचारों और पहाड़ के विकास की सोच को देख प्रभावित हुये और 1979 मे अलग राज्य की मुहिम से जुड़े और उत्तराखण्ड क्रांति दल की नींव रखी।

सक्रीय राजनीति मे डीडीहाट को अपनी कर्म भूमी चुनी और 1985 मे पहली बार विधान सभा चुनाव मे कूदे और जनता को अलग राज्य की धारणा को समझाने मे सफल हुये।कांग्रेस का गढ़ रहे डीडीहाट विधान सभा मे ऐरी पहली बार चारु चन्द्र ओझा को पराजित कर यूपी विधान सभा पहुंचे।
1989 मे ऐरी ने विधान सभा और लोक सभा दोनो चुनाव लड़े और मात्र 9500 वोटो से लोक सभा पहुंचने से चूक गये परन्तु लीलाराम शर्मा को हरा कर विधायक बनने मे सफल रहे।1991 मे विधान सभा भंग होने के बाद हुये उपचुनाव मे लीलाराम शर्मा ने ऐरी को मात दी।
1993 मे हुये उपचुनाव मे ऐरी ने फिर एक बार लीलाराम शर्मा को हराकर जीत हासिल की और 1996 मे राम लहर के चलते पहली बार इस विधान सभा मे भाजपा से विशन सिह चुफाल ऐरी को हरा कर विधायक बने जो वर्तमान तक काबिज हैं।
राज्य गठनके बाद नये परिसीमन के कारण अस्तित्व मे आयी कनालीछीना विधानसभा से ऐरी ने भाजपा के जगजीवन कन्यालय को परास्त कर राज्य की पहली चुनी हुयी विधान सभा पहुंचे।2007 मे कनालीछीना सीट से ही कांग्रेस के मयूख महर से ऐरी को हार का सामना करना पड़ा।
2012 चुनाव मे कनालीछीन सीट हटने के कारण ऐरी पहली बार अपने गृह क्षेत्र धारचूला से चुनाव लड़े पर हरीश धामी से पराजित हुये।
2017 के चुनाव मे ऐरी ने फिर से डीडीहाट विधान सभा से चुनाव मैदान मे उतरने का फैसला किया लेकिन यहां पर फिर से चुफाल से हार का सामना करना पड़ा।

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:::::::::::::::::::::::::::काशी सिह ऐरी ने चुनाव न लड़ने के फैसले के बारे मे पूछने पर कहा कि वर्तमान राजनीति मे चुनावों मे जो शराब और धनबल का चलन बड़ गया है उससे मतदाता सही निर्णय लेने मे असफल हो रहा है जिसका दुष्प्रभाव चुनाव नतीजों पर पड़ रहा है और चुनावों मे अब सरल स्वभाव,शिक्षित,इमानदार लोगो की भागीदारी भी कम होती जा रही है चुनाव अब पैसा,शराब और मैनेजमेंट का खेल बन कर रह गया है इसलिऐ अब उक्रांद के माध्यम से चुनाव मे नवजवानों को जौड़ कर चुनाव लड़ाने का काम करुंगा और राज्य निर्माण की अवधाराणा को मूर्त रुप देने के प्रयास जारी रहेंगे।उम्मींद है समय बदलेगा और हमारी राज्य निर्माण के बाद राज्य बचाने की मुहिम एकदिन सफल होगी।

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