एनजीटी ने गंगा प्रदूषण पर उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की निष्क्रियता’ की निंदा की

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नयी दिल्ली। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने गंगा में अनुपचारित सीवेज के प्रवाह को रोकने के लिए उचित कार्रवाई नहीं करने और ‘‘मूक दर्शक’’ बने रहने के लिए उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की निंदा की है। एनजीटी उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में नदी के प्रदूषण को लेकर मामले की सुनवाई कर रहा था। अधिकरण ने पूर्व में उन सभी जिलों से प्रदूषण के संबंध में विशेष जानकारी मांगी थी, जहां से नदी की मुख्य धारा और सहायक नदियां बहती हैं। न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए. सेंथिल वेल की पीठ ने कहा, ‘‘हम यह देखकर आश्चर्यचकित हैं कि उत्तराखंड में अनुपचारित सीवेज अंततः नदियों में छोड़ा जा रहा है, लेकिन उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा कोई निवारक, दंडात्मक और उपचारात्मक कार्रवाई नहीं की गई है और यह अपनी वैधानिक जिम्मेदारी भूलकर मूक दर्शक बना हुआ है।

पीठ ने अपने हालिया आदेश में कहा, यह स्थिति वास्तव में चिंताजनक है और इसकी हर तरह से निंदा की जानी चाहिए। संबंधित अधिकारियों की एक रिपोर्ट पर गौर करते हुए एनजीटी ने कहा कि सीवेज को प्राचीन जलधाराओं और पवित्र नदियों में बहाया जा रहा है। पीठ ने कहा, उत्तराखंड के सभी 13 जिलों में अनुमानित सीवेज उत्पादन 70 करोड़ लीटर प्रति दिन (एमएलडी) होने का अनुमान है और यहां तक कि 50 प्रतिशत को भी उचित तरह से उपचारित नहीं किया जाता है। सीवर बिछाना और इन्हें घरों से जोड़ना एक अनसुलझा मुद्दा है और पर्यटन सीजन के दौरान पर्यटकों के आने से सीवेज उत्पादन में वृद्धि होती है। एनजीटी ने 151 पन्नों के आदेश में उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को जिम्मेदार सरकारी अधिकारियों और विभागों के प्रमुखों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू करके दंडात्मक कार्रवाई करने का निर्देश दिया। मामले की अगली सुनवाई 19 अप्रैल के लिए सूचीबद्ध की गई।

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