निकाय चुनाव…बिना लोकसभा चुनाव आचार संहिता हटाये बिना अधिनियम में संशोधन करना बनी सरकार के गले की फांस
दया जोशी
हल्द्वानी। उत्तराखंड राज्य में निकायों का कार्यकाल पहली दिसंबर 2023 को समाप्त हो गया था। परन्तु भाजपा सरकार द्वारा लोकसभा चुनाव में अपना दबदबा कायम रखने की रणनीति ने निकाय चुनाव कराने में टालमटोली करती नज़र आयी और निकायों के निर्वाचित बोर्ड भंग कर छह माह के लिए प्रशासकों की तैनाती कर दी गई। निकाय अधिनियम के अनुसार प्रशासकों का कार्यकाल छह माह से अधिक नहीं हो सकता। यह अवधि दो जून को खत्म हो रही है। इस बीच निकाय चुनाव में विलंब को लेकर हाईकोर्ट में सरकार की ओर से शपथ पत्र दिया गया है कि 30 जून तक निकाय चुनाव संपन्न करा लिए जाएंगे। जिसके चलते शासन अब निकाय चुनाव की तैयारियों में जुट गया है। वहीं निकायों में ओबीसी के लिए आरक्षण की सीमा 14 प्रतिशत के स्थान पर वास्तविक संख्या के आधार पर करने समेत अन्य बिंदुओं को लेकर सरकार को नगर निकाय अधिनियम में संशोधन के बाद चुनाव आयोग से अनुमति मिलने पर अध्यादेश के जरिये अधिनियम में संशोधन कर निकाय चुनाव कराना होगा। साथ ही इसमें तमाम निकायों में ओबीसी आरक्षण बढ़ना तय है। इसके साथ ही त्रिस्तरीय पंचायतों की भांति नगर निकायों में दूसरी संतान जुड़वा होने पर उसे एक इकाई मानने, निकायों को होर्डिंग पर टैक्स समेत अन्य अधिकार भी देने की तैयारी है। इस सबके लिए निकाय अधिनियम में संशोधन आवश्यक है। बिना लोकसभा चुनाव आचार संहिता हटाये अधिनियम में संशोधन करना सरकार के गले की फांस बन गया है।
वहीं उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कहा है कि नगर निकायों में प्रशासकों का कार्यकाल अब और नहीं बढ़ाया जाएगा। वहीं लोकसभा चुनाव में हुए कम मतदान ने भाजपा की मुश्किलें बड़ा दी हैं। उत्तराखंड लोकसभा चुनाव में हुए कम मतदान ने भाजपा और कांग्रेस के बीच जीत और हार का कम वोटों का अंतराल दोनों प्रमुख विपक्षी दलों के भविष्य का निर्धारण भी करेगा। जिसके चलते प्रमुख राजनीतिक दल निकाय चुनाव को ओबीसी आरक्षण, मतदाता सूची में संशोधन, भीषण गर्मी व मानसूनी बारिशों की आड़ लेकर प्रशासकों का कार्यकाल अक्टूबर नवम्बर तक आगे बढ़ाने की जुगाड़ तिगाड़ की कोशिशों में जुटा है। उत्तराखंड में आगामी स्थानीय निकाय चुनाव, त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव और 2027 के विधानसभा चुनावों की दिशा और दशा भी इसी पर निर्भर रहेगी। ऐसे में दोनों राजनीतिक दल देश से लेकर गांव तक की सरकार बनाने के लिए राजनीतिक दंगल में नूरा कुश्ती करते हुए दिखाई दे रहे हैं। राजनीतिक दल गांव से लेकर संसद तक की सियासत में व्यस्त हैं। जिसका सीधा असर राज्य के विकास कार्यों पर भी पड़ता हुआ नजर आने वाला है। साथ ही यह पूरा साल उत्तराखंड में खासतौर पर दो राजनीतिक दलों के लिए परीक्षा का समय होगा। इसमें सबसे बड़ी चुनौती उन पार्टी पदाधिकारियों के सामने होगी, जो महत्वपूर्ण पदों पर हैं। जिनके कंधों पर इन चुनावों में जीत का जिम्मा होगा। यानी यह चुनाव कई लोगों को राजनीतिक रूप से नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे तो कई को असफलता के कारण इसका हर्जाना भी भुगतना पड़ सकता है।
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संपादक – फास्ट न्यूज़ उत्तराखण्ड
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