बुध आदित्य योग में 18 अक्टूबर को मनाया जाएगा धनतेरस -राहुकाल में कदापि न करें खरीदारी

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शुभ मुहूर्त-:
इस दिन यदि त्रयोदशी तिथि की बात करें तो 15 घड़ी शून्य पल अर्थात दोपहर 12:19 बजे से त्रयोदशी तिथि लगेगी। पूर्वा फाल्गुनी नामक नक्षत्र शाम 3:42 बजे तक है। इस दिन यदि चंद्रमा की स्थिति को जानें तो चंद्र देव रात्रि 10:12 बजे तक सिंह राशि में विराजमान रहेंगे तदुप्रांत चंद्रदेव कन्या राशि में प्रवेश करेंगे।
धनतेरस पूजा का शुभ मुहूर्त -:
सायं 7:16 बजे से रात्रि 8:20 बजे तक। इसके अतिरिक्त प्रदोष काल शाम 5:48 बजे से रात्रि 8:20 बजे तक।

खरीददारी का शुभ मुहूर्त-:
धनतेरस पर सोना, चांदी या अन्य धातु की वस्तुएं खरीदने, वाहन खरीदने के लिए विशेष मुहूर्त होते हैं। इस दिन के शुभ समय में खरीदारी करने से समृद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति होती है।इस बार धनतेरस पर खरीदारी करने के लिए 18 घंटे 6 मिनट का शुभ मुहूर्त है। धनतरेस पर दोपहर में 12:19 बजे से 19 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 23 मिनट तक खरीदारी कर सकते हैं। इस दिन खरीददारी का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त दोपहर 12:19 बजे से दोपहर 2:57 बजे तक है। इस दिन राहुकाल प्रातः 9:15 बजे से 10:40 बजे तक रहेगा।
समुद्र मंथन से संबंधित धनतेरस की कथा से सभी लोग परिचित हैं परंतु इस पौराणिक कथा को बहुत कम लोग जानते हैं।

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धनतेरस की दूसरी पौराणिक कथा-:
कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस का पर्व पूरी श्रद्धा व विश्वास के साथ मनाया जाता है। धनवंतरी के अलावा इस दिन, देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की भी पूजा करने की मान्यता है। इस दिन को मनाने के पीछे धनवंतरी के जन्म लेने की कथा के अलावा, इसके बारे में एक दूसरी कहानी भी प्रचलित है।

कहा जाता है कि एक समय भगवान विष्णु मृत्युलोक में विचरण करने के लिए आ रहे थे तब लक्ष्मी जी ने भी उनसे साथ चलने का आग्रह किया। तब विष्णु जी ने कहा कि यदि मैं जो बात कहूं तुम अगर वैसा ही मानो तो फिर चलो। तब लक्ष्मी जी उनकी बात मान गईं और भगवान विष्णु के साथ भूमंडल पर आ गईं। कुछ देर बाद एक जगह पर पहुंचकर भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी से कहा कि जब तक मैं न आऊं तुम यहां ठहरो। मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं, तुम उधर मत आना। विष्णुजी के जाने पर लक्ष्मी के मन में कौतुहल जागा कि आखिर दक्षिण दिशा में ऐसा क्या रहस्य है जो मुझे मना किया गया है और भगवान स्वयं चले गए।


लक्ष्मी जी से रहा न गया और जैसे ही भगवान आगे बढ़े लक्ष्मी भी पीछे-पीछे चल पड़ीं। कुछ ही आगे जाने पर उन्हें सरसों का एक खेत दिखाई दिया जिसमें खूब फूल लगे थे। सरसों की शोभा देखकर वह मंत्रमुग्ध हो गईं और फूल तोड़कर अपना श्रृंगार करने के बाद आगे बढ़ीं। आगे जाने पर एक गन्ने के खेत से लक्ष्मी जी गन्ने तोड़कर रस चूसने लगीं।

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उसी क्षण विष्णु जी आए और यह देख लक्ष्मी जी पर नाराज होकर उन्हें शाप दे दिया कि मैंने तुम्हें इधर आने को मना किया था, पर तुम न मानी और किसान की चोरी का अपराध कर बैठी। अब तुम इस अपराध के जुर्म में इस किसान की 12 वर्ष तक सेवा करो। ऐसा कहकर भगवान उन्हें छोड़कर क्षीरसागर चले गए। तब लक्ष्मी जी उस गरीब किसान के घर रहने लगीं।

एक दिन लक्ष्मीजी ने उस किसान की पत्नी से कहा कि तुम स्नान कर पहले मेरी बनाई गई इस देवी लक्ष्मी का पूजन करो, फिर रसोई बनाना, तब तुम जो मांगोगी मिलेगा। किसान की पत्नी ने ऐसा ही किया। पूजा के प्रभाव और लक्ष्मी की कृपा से किसान का घर दूसरे ही दिन से अन्न, धन, रत्न, स्वर्ण आदि से भर गया। लक्ष्मी ने किसान को धन-धान्य से पूर्ण कर दिया। किसान के 12 वर्ष बड़े आनंद से कट गए। फिर 12 वर्ष के बाद लक्ष्मीजी जाने के लिए तैयार हुईं।

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विष्णुजी लक्ष्मीजी को लेने आए तो किसान ने उन्हें भेजने से इंकार कर दिया। तब भगवान ने किसान से कहा कि इन्हें कौन जाने देता है, यह तो चंचला हैं, कहीं नहीं ठहरतीं। इनको बड़े-बड़े नहीं रोक सके। इनको मेरा शाप था इसलिए 12 वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही थीं। तुम्हारी 12 वर्ष सेवा का समय पूरा हो चुका है। किसान हठपूर्वक बोला कि नहीं अब मैं लक्ष्मीजी को नहीं जाने दूंगा।

तब लक्ष्मीजी ने कहा कि हे किसान तुम मुझे रोकना चाहते हो तो जो मैं कहूं वैसा करो। कल तेरस है। तुम कल घर को लीप-पोतकर स्वच्छ करना। रात्रि में घी का दीपक जलाकर रखना और शायंकाल मेरा पूजन करना और एक तांबे के कलश में रुपए भरकर मेरे लिए रखना, मैं उस कलश में निवास करूंगी। किंतु पूजा के समय मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी। इस एक दिन की पूजा से वर्ष भर मैं तुम्हारे घर से नहीं जाऊंगी। यह कहकर वह दीपकों के प्रकाश के साथ दसों दिशाओं में फैल गईं। अगले दिन किसान ने लक्ष्मीजी के कथानुसार पूजन किया। उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। इसी वजह से हर वर्ष तेरस के दिन लक्ष्मीजी की पूजा होने लगी।
आलेख-: आचार्य पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।

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