उत्तराखंड का पहला मामला:-हाईकोर्ट ने प्रजनन के लिए अंतरिम जमानत चाहने हेतु दाखिल जमानत याचिका की सुनवाई करते हुए न्याय मित्र व सरकार से अपनी राय देने को कहा
नैनीताल । उत्तराखण्ड हाईकोर्ट ने प्रजनन के लिये अंतरिम जमानत चाहने हेतु दाखिल जमानत याचिका की सुनवाई करते हुए न्याय मित्र व सरकार से अपनी राय देने को कहा है । यह याचिका हल्द्वानी निवासी सचिन की ओर से दाखिल हुई है । याचिकाकर्ता व उसके तीन साथियों को नैनीताल की जिला अदालत ने एक नाबालिग बच्ची के साथ ट्रक में सामूहिक दुराचार करने के आरोप में 7 वर्ष पहले 20 साल की सजा सुनाई थी जिनकी जमानत याचिका हाईकोर्ट से भी दो बार खारिज हो चुकी है ।
इस याचिका में याचिकाकर्ता की पत्नी की ओर से कहा गया है कि जब उसका पति गिरफ्तार हुआ तब उनकी शादी को महज तीन माह हुए थे । वह मातृत्व सुख का अधिकार चाहती है लेकिन उसका पति जेल में है । इसलिये उसे प्रजनन हेतु शार्ट टर्म बेल पर छोड़ा जाए । इस अंतरिम जमानत याचिका की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायधीश आर एस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक वर्मा की खंडपीठ ने टिप्पणी की कि जेल में बंद व्यक्ति के अधिकारों के अलावा, पत्नी के अधिकारों, इस तरह की व्यवस्था से पैदा हुए बच्चे के अधिकारों की जानकारी जुटाई जानी जरूरी है । क्योंकि बाद में बच्चा अपने पिता के सान्निध्य में रहने का अधिकार मांगेगा, जो कि कैद में है। इसके अलावा यह भी अहम सवाल है कि क्या ऐसे बच्चे को दुनिया में लाने की अनुमति दी जा सकती है जिसका पालन-पोषण मुश्किल होगा क्योंकि माँ अकेली है और वह बच्चे का भरण पोषण कैसे करेगी । साथ ही पिता के बिना रहने से बच्चे पर पड़ने वाले मनोवैज्ञानिक प्रभाव पर भी ध्यान दिया जाना होगा ।
खण्डपीठ ने कहा कि अगर कैदी को संतान पैदा करने की अनुमति दी जाती है तो क्या राज्य को उस बच्चे की देखभाल करने के लिए बाध्य किया सकता है । खण्डपीठ ने न्याय मित्र जे एस विर्क व याचिकाकर्ता के अधिवक्ता को अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड जैसे देशों में इस परिस्थिति में पालन की जा रही परंपराओं और नीतियों की जानकारी जुटाकर कोर्ट को सूचित करने के लिए कहा है व सरकार से इस मुद्दे पर अपनी राय बताने को कहा है ।
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संपादक – फास्ट न्यूज़ उत्तराखण्ड
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