प्लास्टिक से पांच बार लपेट लो पूरी धरती- हम ऐसे पर्यावरण प्रेमी हैं, पर्यावरण दिवस नहीं, पर्यावरण वर्ष मनाने की जरुरत

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दया जोशी
हल्द्वानी। 5 जून यानि विश्व पर्यावरण दिवस पर इस धरा को हरा करने को अनगिनत वृक्षारोपण कर मनाया जाता रहा है, नेता-अभिनेता, आमजन-खासजन तकरीबन सभी ही विशुद्ध वातावरण को “एक पेड सौ पुत्रों के बराबर” को चरितार्थ करने को सिर्फ 5 जून को एक-दो पेड़ लगाना शगुन सा समझ रश्म अदायगी कर देते हैं, आज से लगभग कुछ 10-15 साल पहले सोसल मीडिया, तमाम प्रकारेण सोसल साइट नहीं जन्म लिये थे, तो सारे वृक्ष धरती पर ही रोपे गये होंगे…… उस हिसाब से हरितक्रांति का लबोलबाब अलबत्ता दिखना भी चाहिये था, ये कहने से कोई गुरेज नहीं पर्यावरण विदों ने दूषित पर्यावरण से धरा को बचाने को बहुत कोशिशें की वर्तमान-निर्वतमान सरकारों से कंक्रीट के जंगलों को न बसने देने को काफी लड़ाईयां भी लड़ी प्लास्टिक से धरती को बचाने को धरने-प्रदर्शन जैसी तमाम कोशिशें की खैर….फिर जन्मा सोसल साइटों का दौर पेड़ कम फोटो ज्यादा…..
5 जून संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, हर वर्ष दुनियाभर में 500 अरब प्लास्टिक बैग उपयोग होते हैं, जो सभी प्रकार के अपशिष्टों का 10 फीसदी है। प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि पूरे विश्व में इतना प्लास्टिक हो गया है कि इससे पृथ्वी को पांच बार लपेटा जा सकता है।

भारत में 15000 टन प्लास्टिक अपशिष्ट प्रतिदिन निकलता है, जिसकी मात्रा लगातार बढ़ती जा रही है। प्रतिवर्ष 80 लाख टन प्लास्टिक समुद्र में बहा दिया जाता है, यानी प्रति मिनट एक ट्रक कचरा समुद्र में डाला जा रहा है। यह स्थिति पृथ्वी के वातावरण के लिए बेहद हानिकारक हो सकती है, क्योंकि प्लास्टिक को अपघटित होने में 450 से 1000 वर्ष लग जाते हैं। बात उत्तराखंड की हो तो आम लोगों के अलावा पर्यटक भी अपने साथ प्लास्टिक कचरा साथ लेकर पहाड़ों की सैर पर जाते हैं। धार्मिक पर्यटन के कारण भी हिमालयी क्षेत्र में प्लास्टिक कचरा बढ़ रहा है।

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पहाड़ों पर इसी गति से प्लास्टिक कचरा बढ़ता रहा तो इससे संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र के पर्यावरण, जंगल और पानी के स्रोतों पर संकट और गहरा जाएगा। राज्य सरकार ने पॉलीथिन पर पाबंदी लगाई है, इसके बावजूद पॉलीथिन और प्लास्टिक का लगातार उपयोग हो रहा है। खूबसूरत उत्तराखंड और यहां के हिमालयी क्षेत्र का पर्यावरण बचाने के लिए जरूरी है कि हिमालय पर प्लास्टिक के पहाड़ नहीं बनने दिए जाएं। प्लास्टिक हिमालयी क्षेत्र के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है। सरकार-अदालतों के सख्त रुख के बावजूद उत्तराखंड के तराई से लेकर उच्च हिमालय क्षेत्रों तक पॉलीथिन के अंबार कम नहीं हो रहे हैं। उत्तराखंड में रोजाना खतरनाक प्लास्टिक कचरे की मात्रा बढ़ती जा रही है। वर्ष 2041 तक यह करीब 500 टन प्रतिदिन के खतरनाक स्तर पर पहुंच जाएगा। उत्तराखंड पर्यावरण और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) के सर्वे में ये चौंकाने वाली तस्वीर सामने आई है। शहरों में बढ़ते कचरे से बीमारियां भी बढ़ रही हैं। गंदगी से डेंगू, मलेरिया, हैजा, निमोनिया, पीलिया व हेपेटाइटिस जैसी बीमारियां होती हैं। कचरा जलाने से सांस से जुड़ी समस्याओं का खतरा रहता है।शहरों में बढ़ रहे कचरे की वजह से कई बीमारियां फैल रही हैं। जरूरी है कि शहरों में कचरे को कम से कम किया जाए और नियमित तौर पर सफाई हो । इस वर्ष पर्यावरण दिवस 2023 की थीम ‘प्लास्टिक प्रदूषण का समाधान’ निकालना है। प्लास्टिक या पॉलीथिन का इस्तेमाल प्रकृति को बहुत नुकसान पहुंचाता है। चूंकि प्लास्टिक को नष्ट नहीं किया जा सकता, इस कारण यह नदियों, मृदा आदि में पहुंचकर प्रदूषित करता है। ऐसे में प्लास्टिक या पॉलीथिन के उपयोग को बंद करने का संकल्प लें। इसके बजाय पेपर बैग या कपड़े के बैग का उपयोग करें। इस पर्यावरण दिवस पर खुद पॉलीथिन के उपयोग से बचने और दूसरों को भी प्रोत्साहित करने का संकल्प लीजिए। जरुरत है कि इस बार पर्यावरण दिवस नहीं पर्यावरण वर्ष मनाया जाये तथा वर्ष भर हम सब मिलकर पर्यावरण के दुश्मन इस प्लास्टिक को अपने रोजमर्रा के जीवन से बेदखल कर हिमालय समेत पूरे देश के ईको सिस्टम को बचाने में हाथ बंटाएं।

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