हाईकोर्ट ने यूसीसी के तहत ‘लिव-इन’ पंजीकरण के खिलाफ एक और याचिका पर की सुनवाई

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नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने पिछले महीने प्रदेश में लागू हुई समान नागरिक संहिता (यूसीसी) में सहवासी (लिव-इन) संबंधों के अनिवार्य पंजीकरण के प्रावधान को चुनौती देने वाली एक अन्य याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई की ।

याचिका पर सुनवाई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंदर और न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की खंडपीठ ने की। पीठ इस याचिका पर इसी प्रकार की अन्य याचिकाओं के साथ एक अप्रैल को सुनवाई करेगी। यह याचिका एक युगल ने दायर की है, जिसने सहवासी संबंध के अनिवार्य पंजीकरण को असंवैधानिक’ बताया है।

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याचिकाकर्ता युगल की ओर से अदालत में पेश हुए उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने दलील दी कि सहवासी संबंध के पंजीकरण फार्म में युगल से अनेक विवरण मांगे जाते हैं, जो फॉर्म भरने वाले व्यक्तियों की निजता का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि सरकार को किसी व्यक्ति की निजता का उल्लंघन करने का कोई अधिकार नहीं है। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि पंजीकरण फार्म के प्रावधान भेदभावपूर्ण हैं क्योंकि इनमें मांगी गयी जानकारियां विवाह पंजीकरण में भी नहीं मांगी जाती।

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सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता भी वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए उच्च न्यायालय में पेश हुए और उन्होंने राज्य और केंद्र सरकार का पक्ष रखा। इस माह की शुरूwआत यूसीसी के विरूद्ध इसी प्रकार की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय की इसी पीठ ने केंद्र और राज्य सरकारों को इस संबंध में छह सप्ताह में अपना जवाब दाखिल करने को कहा था।

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