नैनो यूरिया जागरूकता अभियान सुरू- जिला सहायक निबंधक सहकारिता ने हरी झंडी दिखाकर प्रचार वाहन को किया रवाना-

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हल्द्वानी। जिला सहायक निबंधक सहकारी समितियां जनपद नैनीताल ने भीमताल सहकारी समिति से इफको क्षेत्र अधिकारी दीपक आर्य, इंडियन फार्म फॉरेस्ट्री डेवलपमेंट कॉपरेटिव के प्रबंधक देश दीपक यादव, कमला मासीवाल, रोहित दुमका ADO Cooperative, कुन्दन सिंह, पन्ना लाल, ADCO Cooperative प्रगतिशील कृषक आनंद मनी भट्ट, समिति सचिव और 30 किसानों के उपस्थिति में जनपद नैनीताल के किसानों को नैनो यूरिया के प्रति जागरूक करने हेतु नैनो यूरिया प्रचार वाहन को हरी झंडी दिखा कर रवाना किया ,श्री बलवंत सिंह मनराल जी ने बताया की बहु राज्य स्तरीय सहकारी संस्था इफको सहकारिता का अंग है, दिनांक 28.05.2022 को देश के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री जी की उपस्थिति में इफको कलोल(गुजरात) में निर्मित विश्व के प्रथम नैनो यूरिया तरल के संयंत्र का उद्घाटन किया ।


क्यों देश को आवश्यकता है नैनो यूरिया की और मेड इन इंडिया के अंतर्गत इसका आविष्कार क्यों किया गया , आखिर किसान भाई पारंपरिक दानेदार यूरिया की जगह इफको नैनो यूरिया का प्रयोग क्यों करें?
इन सब सवालों का उत्तर देते हुए श्री मनराल जी ने कहा कि हमारे देश के किसान भाइयों को जानना चाहिए कि विश्व में भारत ऐसा देश है जहां पर यूरिया सबसे सस्ता मिलता है मात्र ₹270 में 1 बोरी।
भारत सरकार विदेश से आने वाले एक बैग यूरिया पर ₹3000 से लेकर 4000 खर्च करती है। इस तरह से एक बैग यूरिया पर 2500 से ₹4000 तक अनुदान भारत सरकार को विदेशी मुद्रा के रूप मे देना पड़ता है।

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मतलब एक सरल भाषा में समझे तो एक सबसे छोटा किसान जो वर्ष में 5 बोरी यूरिया का प्रयोग करता है वह भारत सरकार की लगभग ₹20,000 की राशि यूरिया पर अनुदान के रूप में खर्च करवाता है।
पूरे भारत में लाखों करोड़ों रुपए भारत सरकार को उर्वरक के अनुदान के रूप में विदेशी मुद्रा के रूप में देना पड़ता है।
अब यदि किसान भाई अपने उपयोग का आधा हिस्सा भी पारंपरिक यूरिया की जगह नैनो यूरिया का प्रयोग करें तो वह अपने देश की विदेश को भेजी जाने वाली बहुत बड़ी अनुदान की राशि बचा कर के देश की सेवा कर सकता है।
साथ ही इफको नैनो यूरिया पर्यावरण अथवा मानव स्वास्थ्य में सहायक है:
क्योंकि पारंपरिक दानेदार यूरिया किसान भाइयों को बहुत सस्ती दर पर मिलता है इसलिए किसान भाई इसका बहुत ही अनावश्यक और ज्यादा मात्रा में अपनी फसल में प्रयोग करते रहते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि किसानों को अपनी फसल में गाढा हरा रंग देखने की आदत पड़ चुकी है फसल में थोड़ा सा भी हरापन कम होने पर वह बार-बार यूरिया का प्रयोग करते हैं। इसका परिणाम यह होता है की फसल उनकी बहुत ही नरम हो जाती है, थोड़ी सी हवा चलने पर गिर जाती है। फसलों में नरम होने के कारण ज्यादा कीड़े मकोड़े एवं बीमारियों का अटैक होता है। फसल के अंतिम उत्पाद जैसे कि दाने, कंद अथवा फल की भंडारण क्षमता बहुत कम हो जाती है और वह तुडाई के बाद बहुत कम अवधि में ही सड़ने लगते हैं जिससे कि अनावश्यक रूप से उत्पादन में नुकसान होता है। गुणवत्ता में देखा जाए तो ज्यादा यूरिया के प्रयोग से एक फसल के उत्पाद का जो सही स्वाद होना चाहिए वह भी नहीं मिल पाता है। आजकल बाजार में सुंदर-सुंदर टमाटर, भिंडी, धनिया, पालक, बैगन, हरी मिर्ची, तरबूज, खरबूजा, लौकी, कद्दू इत्यादि मिलते तो जरूर हैं लेकिन किसी भी सब्जी में कोई भी स्वाद नहीं है। उसका एकमात्र कारण यूरिया जैसे उर्वरक का ज्यादा मात्रा में उपयोग है। इस तरह से फसल की गुणवत्ता भी गई एवं जब उसका हमने खाने में उपयोग किया तो वह हमारी शुगर, बीपी या किडनी जैसी अनेक बीमारी का कारण भी बनी। मानव स्वास्थ्य के साथ-साथ यूरिया जो कि मात्र 30% ही पौधे द्वारा अवशोषित की जाती है बाकी मात्रा भूमि जल अथवा वातावरण में जा करके मिल गई जिसके फलस्वरूप भूमि जल प्रदूषण के साथ साथ वातावरण भी प्रदूषित हो जाता है।
किसान भाई नैनो यूरिया का किस तरह से प्रयोग करें जिससे कि वह फसल को फायदेमंद हो सके?
नैनो यूरिया का प्रयोग बहुत ही सरल है। क्योंकि यह सौ परसेंट पत्तियों से अवशोषित होने वाली खाद है अतः जब फसल में पूरी तरह से पत्तियां आ जाएं और जमीन लगभग नहीं के बराबर दिखाई पड़े तब समझिए स्प्रे का सबसे सही समय आ गया है। इसीलिए वैज्ञानिक, नाइट्रोजन की आधी मात्रा फसल की शुरुआत की अवस्था में पारंपरिक दानेदार यूरिया से एवं बाकी आधी मात्रा नैनो यूरिया के माध्यम से खड़ी फसल में पौधों को देने की बात करते हैं।

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नैनो यूरिया की बोतल को अच्छी तरह का हिला करके 4 ml नैनो यूरिया प्रति लीटर पानी की दर से यानी कि एक 15 लीटर की क्षमता की स्प्रेयर की टंकी में 60 मिली नैनो यूरिया (नैनो यूरिया की बोतल में लगी हुई ढक्कन से तीन ढक्कन क्योंकि एक ढक्कन 25ml के बराबर है) का प्रयोग किया जाता है। अच्छे परिणाम के लिए नैनो यूरिया के साथ-साथ इफको की सागरिका तरल प्रति लीटर पानी में 2.5- 3 ml एवं जल विलेय उर्वरक जैसे NPK (18:18:18) 10-15 ग्राम पानी में अच्छी तरह से मिलाकर के डालने से सोने पर सुहागा हो जाता है।

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नैनो यूरिया के प्रयोग से किसान को और क्या-क्या लाभ हो सकते हैं?

क्योंकि नैनो यूरिया के प्रयोग से फसल बहुत ही संतुलित मात्रा में नाइट्रोजन ले करके अपना जीवन चक्र पूरा करती है अतः पौधे नाजुक के बजाय मजबूत बनते हैं, फसल को सूखा वाली स्थिति में भी ज्यादा नुकसान नहीं होता है, तेज हवा में फसल गिरने से काफी हद तक बच जाती है, ज्यादा तापमान होने पर भी फूल लगते हैं और फूल से फल भी बनते हैं, आपके फसल में पारंपरिक यूरिया की अपेक्षा अधिक गुणवत्ता युक्त उत्पादन मिलता है। तुडाई के बाद बिना सड़े- गली कई दिनों तक बाजार मे बिक्री के लिए सामान्य तापमान पर ही फसल को संरक्षित (keeping quality) रखा जा सकता है। मतलब कुल मिलाकर कहें तो नैनो यूरिया से उत्पादित फसल बाजार में अधिक भाव से बिकनी ही है।

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