अब मेरी देह मुक्ति की प्रार्थना करें, ताकि गहरी पीड़ा से छुटकारा मिले : रीता खनका, -कैंसर से जूझ रही महिला की मार्मिक अपील सुनकर नहीं रोक पाएंगे आंसू

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ईश्वरी दत्त भट्ट
हल्द्वानी। पिछले लगभग ढाई साल से कैंसर बीमारी से जूझ रही रीता खनका रौतेला ने कहा कि अब मेरी देह से मुक्ति की प्रार्थना करें, ताकि गहरी पीड़ा से छुटकारा मिले। खनका ने कहा कि बीमार होने के बाद से सैकड़ों शुभचिंतकों, मित्रों और परिजनों ने मेरे स्वास्थ्य को लेकर चिंता व्यक्त करने के साथ ही मेरे जल्दी स्वस्थ्य होने की हजारों बार प्रार्थनाएं की हैं। मेरे व मेरे परिवार का बीमारी से लडऩे के लिए हौसला बढ़ाया है। इस सबके लिए मैं व मेरा परिवार हमेशा आप लोगों का ऋणी रहेगा।


अब मेरी बीमारी ऐसी स्थिति में पहुंच गई है कि जहां से आगे के जीवन की कोई उम्मीद नहीं है। लोग मौत से संघर्ष करते हैं पर मैं जीवन से संघर्ष कर रही हूं। मुझे जीवन के सांसों की आवश्यकता नहीं, बल्कि मौत का आलिंगन चाहिए। ताकि गहरी पीड़ा और वेदना से जल्द से जल्द मुक्त हो सकूं। किसी भी प्राणी के जीवन का अंतिम सत्य मृत्यु का आलिंगन ही है और इसे मैं और मेरा परिवार पूरी सत्यता से स्वीकार करते हैं। ऐसे में मेरी यह देह सांसों से मुक्त हो जाती है तो बुलबुल और उसके बौज्यू को मेरी मुक्ति का दु:ख तो होगा पर वे इस दु:ख की पीड़ा को स्वीकार करेंगे। उन्होंने कहा कि जब मैं मौत का आलिंगन चाह रही हूं तो मैंने अपनी देह को निर्जीव होने के बाद सात कुन्तल लकड़ी को समर्पित करने के बजाय यहीं मेडिकल कॉलेज को देने का निर्णय भी लिया है। यह निर्णय तो हम दोनों ने बहुत पहले कर लिया था पर कागजी औपचारिकताओं को पूरा नहीं कर पाए थे। 20 मई को वह औपचारिकता भी पूरी कर ली गई है। मेडिकल कॉलेज प्रशासन, जिला प्रशासन और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को भी इस बारे में औपचारिकता संकल्प पत्र सौंप दिया है।

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कहा कि मेरे इस संकल्प को पूरा करने में मेडिकल कॉलेज में अध्यापक व मेरी ननद डॉ. दीपा चुफाल देउपा, देवर अंकुश रौतेला, बुलबुल के बौज्यू, देवर के मित्र ललित मोहन लोहनी और  ननद के ही विभाग के दीप चन्द्र भट्ट का सहयोग रहा है। कहा कि मैं इन सब के प्रति भी आभार व्यक्त करती हूं।

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उन्होंने आगे कहा कि मैं अब अपनी देह से जल्दी मुक्ति इस वजह से भी चाहती हूं कि मेरे बाद मेरे बैड पर आईसीयू में वह मरीज आएं, जिसे जीवन के सांसों की बहुत आवश्यकता है। मेरे जीवन का अब कोई मतलब नहीं रह गया है। शादी के बाद मैंने अपनी भरपूर जिंदगी जी है। मैंने लिखना, पढऩा और तर्क करना सीखा। सबसे बड़ी बात यह कि मैंने धारा प्रवाह कुमाउंनी भी शादी के बाद ही सासू ईजा और बुलबुल के बौज्यू के प्रेरित करने पर ही सीखी। अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि मैं इस बात को मानती हूं। कहा कि अपने कुमाउंनी लोक जीवन के तीज-त्योहारों को मनाना और लोक की परम्परा का पालन करना भी मैंने शादी के बाद ही सीखा।


बताया कि मैं आज आईसीयू के बैड में इस स्थिति में नहीं हूं कि खुद कुछ लिख सकूं। यह पोस्ट मैं बुलबुल के बौज्यू से लिखवा रही हूं।  इसमें हो सकता है कि इस पोस्ट के शब्द हूबहू मेरे न हों, लेकिन भावनाओं के शब्द पूरी तरह मेरे हैं।

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अपने अंतिम पंक्ति में कहा है कि मैं अंत में एक बार फिर से आप सब से अपनी इस देह से जल्द से जल्द मुक्ति में सहयोग चाहती हूं। आप सब से मेरी प्रार्थना है कि अपने-अपने देवी-देवताओं, ईष्ट देवों से कहें कि मुझे इस नश्वर देह से मुक्त करें। आप सबने पिछले ढाई साल में मेरे जीवन के लिए कामना की, अब आखिरी वक्त में देह से मुक्ति की प्रार्थना में बिना झिझक सहयोग करें। आप सब का प्यार, सहयोग मेरी बिटिया बुलबुल और उसके बौज्यू को आत्मबल ही देगा। आप सब लोगों का जीवन आयोग्यमयी, प्रेम, प्यार व सहयोग से भरपूर रहे, यही कामना मेरी ओर से है।

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