संजीव कुमार मक्का की खेती को प्रोत्साहित करने की मुख्यमंत्री से करेंगे मांग

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किच्छा। वरिष्ठ भाजपा नेता संजीव कुमार सिंह ने उत्तराखंड सरकार से मक्का की खेती को पर्यटन की दृष्टि विकसित एवं प्रोत्साहित करने की मांग की है। उन्होने कहा कि पिछले दशक से राज्य के मैदानी क्षेत्रों में मक्का आधारित उद्योगों की स्थापना से राज्य में मक्का की माँग में निरंतर वृद्धि हो रही है तथा मक्का का एक औद्योगिक फसल के रूप में महत्व बढ़ रहा है जिससे मक्का की खेती करने वाले कृषकों के लिये आय अर्जन की अपार संभावनायें उत्पन्न हुई हैं। इन संभावनाओं का लाभ लेने तथा राज्य में मक्का की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिये मक्का के वर्तमान उत्पादन व उत्पादकता में वृद्धि की आवश्यकता है।

मक्का उत्तराखण्ड की एक महत्वपूर्ण फसल है तथा इसकी खेती लगभग 24 हजार हैक्टेयर क्षेत्रफल में पर्वतीय व मैदानी दोनों ही क्षेत्रों में की जाती है। इसकी खेती मुख्यतः असिंचित अवस्था में की जाती है तथा यह राज्य में प्रचलित सभी प्रमुख फसल प्रणालियों का एक अभिन्न घटक है। इसकी खेती मुख्यतः खरीफ (जून-सितंबर) में की जाती है परन्तु तलहटी व मैदानी क्षेत्रों में इसकी खेती जायद (फरवरी-मई) में भी की जाती है।

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परंपरागत रूप से उपज का बड़ा भाग घरेलू उपभोग हेतु प्रयोग होता है। उत्तराखंड पर्यटन प्रदेश है तथा प्रदेश की भाजपा सरकार ने वर्ष 2023 को मोटा अनाज वर्ष घोषित किया था। साथ ही मोटे अनाज के उत्पादन को बढ़ाने के लिए सरकार ने कृषि विभाग को साथ लेकर तमाम योजनाएं चलायी हैं। उत्तराखंड में कृषि उत्पादन के लिए प्रसिद्ध जनपद ऊधमसिंह नगर में धान और गेहूं का उत्पादन ही अधिक मात्रा में होता है। अब कृषि विभाग भी बेमौसमी धान की जगह किसानों को मोटे अनाज में मक्का की फसल को बढ़ावा दे रहा है।
वर्तमान में जिले में करीब 15 से 20 हजार हेक्टेयर में मक्का बोया जा रहा ह्रै। जिले में मोटा अनाज में मक्का के उत्पादन हो रहा है। किसानों को जागरूक किया जा रहा है।

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ऊधमसिंह नगर में किसान अधिक फायदे के लिए बेमौसमी धान का उत्पादन करते हैं। इससे पानी का जल स्तर कम होने के साथ ही पर्यावरण को भी काफी नुकसान होता है। इसको लेकर जिला प्रशासन ने भी लम्बे समय से काफी सख्त रूप अपनाया हुआ है। इसके बाद कृषि विभाग ने बेमौसमी धान की जगह वैकल्पिक व्यवस्था के तहत मक्का के उत्पादन पर जोर दिया गया। वर्ष 2022 में जिले में करीब 1000 किसान मक्का की खेती का उत्पादन कर रहे थे। इसके बाद किसानों की संख्या लगातार बढ़ती चली गई। यह संख्या 2000 से 3000 तक पहुंच गई है। उत्तराखंड पर्यटन प्रदेश है तथा यहां आने वाले सैलानियों के लिए सड़क किनारे लकड़ी की आंच में भुनकर बिकते भुट्टों का स्वाद मुंह में पानी ला देता है। इस भुट्टे के स्वाद की ही दीवानगी है कि कई पर्यटक उत्तराखंड में भुट्टे खाए बिना पहाड़ की वादियो़ की सैर के लिए आगे नहीं बढ़ते। मई-जून में भुट्टे की फसल पक जाती है। नैनीताल जिले के पहाड़ी रास्तों पर जगह-जगह आपको भुट्टा आसानी से मिल जाता है।

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