राज्य आन्दोलन की अवधारणा के अनुरूप नहीं हो पाया राज्य का विकास

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वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी गोविंद नागिला ने उत्तराखंड राज्य के राज्य की 25 वीं वर्षगांठ पर राज्य के वर्तमान हालातों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि हालांकि उत्तराखंड निर्माण के बाद यहाँ की परिस्थितियों में बदलाव आया है लेकिन राज्य आन्दोलन की अवधारणा के अनुरूप राज्य का विकास नहीं हो पाया है जल, जंगल, जमीन और पहाड़ की जवानी को उत्तराखंड के विकास में समुचित भागीदारी नहीं मिल पायी है, पच्चीस बरस का उत्तराखंड आज भी अपनी स्थायी राजधानी तक घोषित नहीं कर पाया है।

पलायन बदस्तूर जारी है, अनियोजित व अवैज्ञानिक विकास के परिणाम स्वरूप पहाङो में प्राकृतिक आपदाऐं लगातार बढ़ रही है जल जंगल और जमीन के लिए कोई ठोस नीतियां नहीं बन पायी है, पहाड़ के अस्तित्व से जुड़े भू कानून और मूल निवासियों के मुद्दे हाशिये पर धकेल दिए गए है। शिक्षा, स्वास्थ्य और सङक, बिजली और रोजगार जैसी मूलभूत सुविधाओं के आभाव में पहाड़ों से लगातार पलायन बङ रहा है। उत्तराखंड आंदोलन के लिए संघर्ष करने वाले आन्दोलनकारियों और शहीदों के सपने आज भी अधूरे हीं है, पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी आज भी अपने अस्तित्व को बचाने के लिए छटपटा रही है ।

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गोविन्द नागिला 
उत्तराखंड राज्य आन्दोलनकारी,
पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य
गोरा पड़ाव, हल्द्वानी

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