उत्तराखण्ड हिन्दी-संस्कृत शिक्षण मंच ने देहरादून में शिक्षा महानिदेशक बंशीधर तिवारी सौपा ज्ञापन-

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एस आर चंद्रा

“भिकियासैंण। उत्तराखण्ड हिन्दी-संस्कृत शिक्षण मञ्च “आज देहरादून में शिक्षा महानिदेशक श्रीमान बंशीधर तिवारी को एक ज्ञापन सौंपा गया । जिसमें राज्य के हाई स्कूल GBलों और इण्टर कॉलेजों में राज्य की द्वितीय राजभाषा संस्कृत के शिक्षण की लचर व्यवस्था का वर्णन किया गया है। शिक्षा निदेशालय से प्राप्त सूचना के अनुसार राज्य में कुल 1353 राजकीय और अशासकीय हाई स्कूल और 2480 इंटरमीडिएट कॉलेज संचालित हैं । जिनमें 1353+2480 = 3833 एल टी शिक्षकों के सापेक्ष केवल 485 सहायक अध्यापकों और 2480 के सापेक्ष केवल 1056 प्रवक्ता-संस्कृत के पद सृजित हैं । शेष 3348 एल टी और 1424 प्रवक्ताओं के पद सृजित कर सभी माध्यमिक विद्यालयों में कक्षा 6 से 12 तक द्वितीय राजभाषा को लागू किये जाने से ही द्वितीय राजभाषा की अवधारणा पूरी हो सकती है। ज्ञात हो कि राज्य के सभी विद्यालयों में संस्कृत भाषा कक्षा 6 से 8 तक अनिवार्य विषय के रूप में और कक्षा 9-10 न द्वितीय भाषा (विषय) अंग्रेजी के विकल्प के रूप में पढ़ाई जाती है। इसी प्रकार इंटरमीडिएट में भी कक्षा 11-12में द्वितीय विषय अंग्रेजी के विकल्प के रूप में संस्कृत पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं पंजीकृत होते हैं । विद्यालयी में संस्कृत पढ़ाने वाले शिक्षकों की नियुक्तियाँ न होने पर या तो हिन्दी के अध्यापकों को दो-दो विषय (हिंदी के साथ ही संस्कृत भी) पढ़ाने होते हैं अथवा उन विषयाध्यापकों से संस्कृत पढ़वाई जाती है , जिनको उस विषय का ज्ञान ही नहीं है । ऐसी दशा में संस्कृत भाषा का आधा- अधूरा ही ज्ञान छात्रों को प्राप्त हो पाता है। यह विसंगति वर्ष 2013 से ही अधिक समस्या बनकर खड़ी हुई है। जब विद्यालयों में न्यून छात्रसंख्या का हवाला देते हुए विभाग ने शिक्षकों के 2600 पद एक साथ समाप्त कर शिक्षकों को सरप्लस की नीति के तहत अन्य विद्यालयों समायोजित कर दिया। प्रत्येक इण्टर कॉलेज में इससे पूर्व हिंदी, अंग्रेजी , गणित , विज्ञान, सामाजिक विज्ञान के दो-दो अध्यापक कार्यरत होते थे ।2013 में सरप्लस नीति के लागू होने से इन विषयों के 1- 1 पद समाप्त कर दिए गए हैं। हिंदी के 2 अध्यापकों में से हिंदी और संस्कृत भाषा का शिक्षण कार्य पूरा होता था। तबसे विज्ञान ,गणित, अंग्रेजी सामाजिक विज्ञान का शिक्षण कार्य तो सरलता से चलते रहा किन्तु हिन्दी और संस्कृत दो विषय पढ़ाने के लिए एक ही हिन्दी-शिक्षक पर अतिरिक्त बोझ आन पड़ा है। 2004 कि बाद जो हाई स्कूल नए खुले हैं , उनमें भी एल टी के केवल 6 पद(हिंदी,अंग्रेजी, विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान , कला या व्यायाम में से एक ही पद ) स्वीकृत हुए हैं।

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पुराने इण्टर कॉलेजों में अनेक विषय स्वीकृत रहते थे किंतु 2007 के बाद उच्चीकृत विद्यालयी में केवल 9 ही पद स्वीकृत हैं जिनमें हिन्दी , अंग्रेजी , भौतिक विज्ञान , रसायन , जीव विज्ञान , गणित और 3 विषय कला वर्ग के हैं । संस्कृत भाषा के पद यहाँ भी नहीं हैं । जो छात्र संस्कृत से कक्षा 10 उत्तीर्ण होते हैं ,उनको इण्टर में संस्कृत भाषा शिक्षण से वंचित किया जाता है या संस्कृत का पद(अध्यापक) न होने की स्थिति में असंगत विषय के शिक्षकों से आधा-अधूरा ही ज्ञान नहीं मिल पाता है।महानिदेशक महोदय ने संस्कृत भाषा की अनिवार्यता को स्वीकार किया और कहा कि ” नासा ” ने संस्कृत भाषा को कम्प्यूटर के लिए सबसे उपयुक्त भाषा माना है। वर्तमान समय में योग और आयुर्वेद की शिक्षा के लिए भी संस्कृत की अनिवार्यता सिद्ध हुई है। उन्होंने बताया कि आगामी 21 सितम्बर को माननीय मुख्यमंत्री द्वारा आहूत बैठक में इस विषय को मुख्यमंत्री जी के संज्ञान में लाया जाएगा। उत्तराखण्ड हिन्दी- संस्कृत शिक्षण मञ्च लम्बे समय से जनप्रतिनिधियों और शिक्षा अधिकारियों के समक्ष इस मांग को रखने के प्रयास करता आ रहा है।इसी श्रृंखला में 13 जनपदों के मुख्य शिक्षाधिकारियो के माध्यम से शिक्षा निदेशक को ज्ञापन दिए जा चुके हैं लेकिन विभागीय अधिकारियों ने कोई उचित कार्यवाही अब तक कि हो , इसके कोई परिणाम धरातल पर नहीं आए हैं । संस्कृत अकादमी , संस्कृत भारती के पदाधिकारियों से भी शिक्षण मञ्च ने समन्वय स्थापित कर आंदोलन को गति प्रदान करने का बीड़ा उठाया है। अनेक सामाजिक कार्यकर्ता और संस्कृत प्रेमी इस मांग के समर्थन हेतु आगे आ रहे हैं। संस्कृत भाषा और भारतीय संस्कृति का अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है। सभी भारतीयों को इसके महत्व को समझना चाहिये। संस्कृत के बिना भारतीय संस्कृति अपूर्ण है।

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