गोवर्धन पूजा धूमधाम से मनाई लेकिन अधिकांश घरों मे पशुपालन नहीं होने से लोग मायूस
एस आर चंद्रा
भिकियासैण (अल्मोड़ा)। गोवर्धन पर्व के अवसर पर गौ सेवा सदन ज्योली में पर गौ सम्वर्धन यज्ञ का आयोजन किया गया। इस मौके पर गौ वंश को माल्यार्पण कर उन्होंने विशिष्ट आहार खिलाएं गए। कार्यक्रम का शुभारम्भ गौ सेवा न्यास के सचिव दयाकृष्ण कांडपाल द्वारा किया गया। गौ सम्बर्धन यज्ञ पर प्रकाश डालते हुए कांडपाल ने कहा कि गुलाम भारत में गौवंश की सुरक्षा के लिए सबसे पहले महर्षि दयानन्द ने आवाज उठाई थी। गौकरुणानिधि नामक पुस्तक में उन्होंने इसके महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आज चारों तरफ गौवंश लावारिस अवस्था में घूम रही हैं। निराश्रित गायों के कारण चारों ओर अव्यवस्थाएं फैल रही हैं। गौसदन ज्योली समाज में एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है ताकि गौ आधारित अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जा सके। उन्होंने कहा कि गौशाला गुरुकुल की एक प्रयोगशाला हैं,जिसमें गौवंश को संरक्षित संमवर्धित करने का कार्यक्रम चल रहा हैं। कार्यक्रम में महेन्द्र सिंह, मनोज लोहनी, प्रताप सिंह सत्याल, पीसी जोशी, शंकर दत्त भट्ट, पूरन चन्द्र तिवारी, एमसी कांडपाल, बसंत बल्लभ पन्त, बद्री अग्रवाल, बीडीएस नेगी, यशवन्त परिहार आदि लोगो मौजूद रहे। ज्ञातव्य हो कि दीपावली के बात गोवर्धन पूजा उस उत्साह के साथ नहीं होती जैसी कि पहले होती थी. दीवाली के अगले दिन मनाये लेकिन इस बार ग्रहण लगने के कारण दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा मनाई जा रही है. बड़े लोग गाय व बैल को टीका लगा देते थे. उसके बाद का काम बच्चों का होता था. हर गाय व बैल के लिये फूलों की माला बनायी जाती है. जिसे उनके गले में बांधा जाता है.
उससे पहले एक थोड़ा गहरे बरतन में बिस्वार का थोड़ा गाढ़ा घोल बनाया जाता है. यह चावल के आटे या चावल को भीगाने के बाद उसे पीस कर बनता है. उसके बाद माड़े (खाना बनाने के लिये चावल को मापने का बरतन, जिसमें लगभग पाव भर चावल आते हैं) में धन (+) के आकार में एक मोटा धागा बॉधा जाता है. उसके बाद उसे बिस्वार में डूबो कर गाय व बैल के पूरे शरीर में उससे ठप्पे लगाये जाते हैं. जिसे “थाप लगाना” कहते हैं. इसकी शुरुआत टीका लगाने के बाद गाय व बैल के माथे से की जाती है. जब बिस्वार के ठप्पे सूख जाते हैं तो गाय व बैल एक अलग ही रंग के नजर आते हैं. काले व भूरे रंग की गाय तो सफेद ठप्पों में और भी ज्यादा सुन्दर लगती है. ये ठप्पे तीन – चार दिन तक गाय व बैल के शरीर पर रहते हैं.
आज के दिन कुमाऊँ के हर घर में च्यूड़े भी बनाए जाते हैं जिन्हें अगले दिन दूतिया त्यार के दिन घर की सयानी महिलाएँ परिवार के हर सदस्य के सिर में चढ़ाती हैं. गोवर्धन पूजा के अगले दिन भी गाय व बैलों की पूजा की जाती है. उस दिन उनके सींग में सरसों का तेल लगाकर उन्हें चमकाया जाता है।
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संपादक – फास्ट न्यूज़ उत्तराखण्ड
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