नफरत फैला रहे हैं चैनल : रवि शंकर

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गत दिनों नफरती भाषण के खिलाफ कदम उठाने की मांग करने वाली याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत में टेलीविजन चैनल समाज में दरार पैदा कर रहे हैं। ऐसे चैनल एजेंडे से संचालित होते हैं और सनसनी के समाचारों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। यह पैसा लगाने वालों के आदेश पर काम करते हैं। चैनलों पर नफरत फैलाने वाले बयान पर नाराजगी जताते हुए शीर्ष अदालत ने कहा नफरत के भाषण एक राक्षस है, जो सबको निकल जाएगा। चैनलों को लेकर शीर्ष कोर्ट की यह टिप्पणी बेहद सनसनीखेज है और चैनल मालिकों को इस पर विचार करना चाहिए कि आखिर वे समाज को क्या परोस रहे हैं।


दरअसल हर रोज़ टीवी चैनल अपने कार्यक्रमों की प्राथमिकता टीआरपी के आधार पर तय करते हैं। प्रातः कालीन बैठक में जिस विषय की टीआरपी सर्वाधिक होती है, उसे ही सारे दिन दिखाया जाता है। टीआरपी यानी टेलीविजन रेटिंग प्वाॅइंट या टारगेट रेटिंग प्वाॅइंट। यह एक मीट्रिक है, जो टीवी स्क्रीन पर कार्यक्रम की सफलता को दर्शाता है। इसका उपयोग यह मूल्यांकन करने के लिए किया जाता है कि कौन सा कार्यक्रम टीवी स्क्रीन पर सबसे अधिक देखा गया या देखा जाएगा। टीआरपी लोगों के हितों को मापता है और एक विशिष्ट कार्यक्रम की सफलता को दर्शाता है।
जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस डीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि देश में बेरोजगारी, महंगाई जैसी कई समस्याएं हैं, लेकिन इन पर बहस के बजाय नफरती भाषण का सहारा लिया जा रहा है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है। पीठ ने स्पष्ट किया कि वह किसी एक खास धर्म के बारे में नहीं बोल रहे हैं। जस्टिस जोसेफ ने टिप्पणी की, जब आप बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दावा करते हैं तो आपको ऐसा कार्य करना चाहिए जैसी आप से उम्मीद की जाती है। अन्यथा हमारे लिए क्या गरिमा बची ? कोर्ट ने अपने आदेश में दर्ज किया कि केंद्र सरकार समस्याओं से निपटने के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर विचार कर रही है। इनमें ऐसी बातों से निपटने के लिए कानून भी शामिल है। पीठ ने न्याय मित्र को अगली तारीख पर मसौदा दिशा-निर्देश पेश करने के निर्देश भी दिए।

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मुझे एक घटना याद आ रही है, जब छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में 6 अप्रैल 2010 को नक्सलियों ने सीआरपीएफ के 76 जवानों की हत्या कर दी थी, लेकिन कुछ चैनलों ने इस खबर को प्राथमिकता न देकर अन्य खबरों को शीर्ष पर रखा, क्योंकि टीआरपी में दूसरी खबरों को देखने के लिहाज से दर्शकों के लिए बेहतर माना गया होगा। यह कितना शर्मनाक है।

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जस्टिस जोसेफ ने कहा, चैनल मूल रूप से परस्पर प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। कुछ खबरों को सनसनीखेज बनाते हैं। बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी महत्वपूर्ण है, लेकिन क्या दर्शक इस प्रकार के एजेंडे को समझ सकते हैं। चैनल के पीछे पैसा है, लेकिन मुद्दा यह भी है कि कौन पैसा लगा रहा है। वही तय करते हैं सबकुछ। पीठ ने समाचार प्रसारण मानक प्राधिकरण और केंद्र सरकार से पूछा कि वह इस तरह के प्रसारण को कैसे नियंत्रित कर सकते हैं ? सुप्रीम कोर्ट ने न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड अथॉरिटी यानी एनबीएसए के कामकाज पर भी नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा, दुर्भाग्य से आप कुछ नहीं कर रहे हैं। इस पर एनबीएसए ने जवाब दिया कि कुछ चैनल उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आते तथा हमारे कोड को प्रोग्राम कोड का हिस्सा बनाए जाने से यह पूरे टीवी क्षेत्र में लागू हो सकता है।


आज यदि आप देखें तो प्रधानमंत्री से संबंधित कोई भी कार्यक्रम या उनका संबोधन देश के किसी भी हिस्से में हो रहा हो तो सभी चैनल तत्काल अन्य कार्यक्रम रोककर उसे ही प्राथमिकता देने लगते हैं, क्योंकि सबको पता है कि आज की तारीख में प्रधानमंत्री के संबोधन तथा उनके कार्यक्रम की सर्वाधिक टीआरपी है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह भी पूछा कि अगर समाचार एंकर खुद नफरत फैलाते हैं तो उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की जा सकती है।

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पीठ ने कहा, एनबीएसए को पक्षपात नहीं करना चाहिए। एकतरफा कार्यक्रम नहीं हो सकता। लाइव कार्यक्रम की निष्पक्षता एंकर पर निर्भर करती है। कोर्ट ने कहा, अगर एंकरों को पता हो कि उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है, तो वह इससे बचेंगे। एंकरों को हटाया भी जा सकता है। कोर्ट ने जोर दिया कि मीडिया कर्मियों को पता होना चाहिए कि खुद पर नियंत्रण कैसे किया जा सकता है ? इन सब बातों का जवाब देते हुए केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा कि हम सीआरपीसी में संशोधन पर विचार कर रहे हैं। केंद्र सरकार नफ़रती भाषण से निपटने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता में व्यापक संशोधन करने की योजना बना रही है। आशा करते हैं कि चैनल शीर्ष कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद अपनी कार्य प्रणाली में अवश्य सुधार लाएंगे।

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

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