घुघुटी त्यार… सरयू नदी के उस पार और इस पार दो अलग अलग दिन बनाए जाते हैं घुघुते
गंग पार पिथौरागढ़ व आधे बागेश्वर में शनिवार और गंगवार आधे बागेश्वर, अल्मोड़ा और नैनीताल जनपदों में रविवार की शाम को बनेंगे घुघुते
गणेश पाण्डेय दन्यां
उत्तरायणी पर्व के अवसर पर बनाए जाने वाले घुघुते विभिन्न स्थानों पर दो अलग -अलग दिन पकाए जाने की परंपरा है। गंग पार और गंग वार के लिए सरयू नदी को आधार बनाया गया है। बागेश्वर शहर में भी नदी से इस पार के क्षेत्र में रविवार की शाम को और उस पार के क्षेत्र में शनिवार की शम को घुघुते पका कर अगले दिन कौओं को खिलाए जाएंगे।
उत्तरायणी पर्व माघ मास की संक्रांति को सर्वत्र मनाया जाता है। यह संक्रांति मकर संक्रांति नाम से प्रसिद्ध है। पौष माह की समाप्ति और माघ माह के प्रारंभ के दिन इस पर्व को सूर्य पर्व अथवा स्नान पर्व के रूप में मनाने की परंपरा रही है। इस दिन से सूर्य उत्तर दिशा में अग्रगामी होता है इसलिए इस पर्व का नाम उत्तरायणी भी पड़ा है। मकर संक्रांति को पड़ने वाला उत्तरायणी पर्व सभी स्थानों पर एक ही दिन मनाया जाता है। मगर इस पर्व के अवसर पर मनाया जाने वाला “घुघुतिया त्यार” सरयू नदी के उस पार और इस पार दो अलग अलग दिन मनाया जाता है। इस बार मकर संक्रांति रविवार को है। परंपरा के मुताबिक सरयू पार के के इलाकों के अलावा पूरे पिथौरागढ़ और चम्पावत जनपदों में घुघुते शनिवार की शाम को पकाएंगे और रविवार की सुबह कौओं को खिलाएंगे। बागेश्वर जनपद में सरयू नदी के इस पार के इलाकों के साथ ही अल्मोड़ा, नैनीताल जनपदों के समस्त लोग संक्रांति के दिन रविवार की शाम को घुघुते बनाएं जाएंगे और सोमवार को कौओं को खिलाएंगे।
ऐसे बनते हैं घुघुते
उबले हुए पानी में गुड़ को गलाकर रस तैयार किया जाता है। गुड के इस रस में सूजी और घी मिला हुआ गेहूुं का आटा अच्छी तरह से गूंथा जाता है। गूथें हुए आटे को विभिन्न प्रकार का आकार देते हुए घुघुते, तलवार और डमरू की शक्ल में तैयार किए जाते हैं। कुछ देर तक धूप में सुखाने के बाद इन्हें घी या तेल में तला जाता है। उसके बाद परिवार में हर बच्चे के लिए इनकी माला तैयार की जाती है। अगले दिन सुख और समृद्धि देने वाले पक्षी कौओं को भोग स्वरूप ये घुघुते खिलाए जाते हैं।
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संपादक – फास्ट न्यूज़ उत्तराखण्ड
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