पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है जगदीश जोशी की तीन दशक पूर्व लिखी कुमाउनी कविता

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गणेश पाण्डेय दन्यां
हिन्दी व कुमाउनी के वरिष्ठ साहित्यकार जगदीश जोशी की 30 वर्ष पूर्व लिखी कविता “हमार गौ में बाग बौई रौ” तब अचानक याद आ गई जब हाल के कुछ महिनों से अल्मोड़ा शहर सहित आस पास के ग्रामीण इलाकों में गुलदार का जबर्दस्त आतंक और खौफ फैला हुआ है। अंग्रेजी, हिन्दी और कुमाउनी तीनों भाषाओं के विद्वान जगदीश जोशी की यह कविता उस दौर में भी सटीक थी और आज भी सोलह आने प्रासंगिक लगने लगी है। अल्मोडा जिले के अन्तर्गत नैनी क्षेत्र के क्वेराली गांव निवासी रमेश सिंह के इकलौते 11 वर्षीय आरव को 24 नवंबर को गुलदार आंगन से उठा ले गया, ठीक 6 दिन बाद कुजेली ग्राम प्रधान बसंत राम की बौनाले में बैठी 65 साल की मां नंदी देवी पर झपटकर बुरी तरह लहुलुहान कर गया। अगर आस पास के लोग हल्ला नहीं करते तो गुलदार बुढिया को मार डालता। गुलदार द्वारा धौलादेवी और लमगडा क्षेत्र में कई दर्जन मवेशियों को मारने की घटना के बाद मारे दहशत के बच्चों का स्कूल जाना बंद हो गया है। अल्मोडा शहर सहित आस पास की कई अन्य बस्तियों में गुलदार को बेखौफ घूमते हुए सीसी कैमरों में देखा गया हैै।


हमार गौं में बाग बौई रौ कुमाउनी कविता लिखने के दौरान भले ही गुलदार का इतना आतंक तो नहीं था मगर जगदीश जोशी के अन्तर्मन का सीसी टीवी कैमरा पूर्वानुमान लगा चुका था।
जगदीश जोशी ने हमार गौं में बाग बौई रौ कविता में लिखा है- पहले बाग नान नान कुकुरों को उठाता था, फिर बकार, गोरू और भैसों को मारने लगा, कुकरी बाग कुछ समय बाद मैंसी बाग बन गया, औरत मर्द और बच्चों को अपना निवाला बनाने लगा।

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पैंलि पैंलि यैल नान कुकुर उठाई, फिर गोर भैंस बुकाई
अब यैल भितेरै बै मैंस रड़ाई, बेई यो कुकुरी छी,
मैंसी यो आज हैरौ, हमार गौं में बाग बौई रौ।

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आज जो बाग गिजी जाणौ, उकें जै बेर मैंस गिज्यै ऊणौ,
इजर भावर घुरड़ कांकड़, बागक हिस्स हत्यै लूणौ।

मैंस आज आपण मतिल तौई रौ, हमार गौं में बाग बौई रौ।

जगदीश जोशी वनों के विनाश को सामाजिक असुरक्षा का कारण मानते हैं। जंगलाें के अत्यधिक दोहन का ही परिणाम है कि हिंसक जानवर आबादी और घरों की ओर बढ़ रहे हैं।
अंग्रेजी के प्रवक्ता पद से सेवानिवृत हुए जोशी जी
तीनों भाषाओं में लिखते हैं। अंग्रेजी की कई पुस्तकों का वे कुमाउनी में अनुवाद भी कर चुके हैं। अपने विद्यार्थी जीवन से ही साहित्य साधना कर रहे जगदीश जोशी ने अपनी दमदार और उर्वर रचनाओं से अंग्रेजी, हिंदी और कुमाउनी साहित्य भंडार को समृद्ध बनाया है और निरंतर श्रीवृद्धि में लगे हुए हैं। साहित्य की विभिन्न विधाओं में महत्वपूर्ण स्थान बना चुके जोशी जी की रचनाओं का उचित मूल्यांकन होना जिसके वे हकदार हैं, अभी शेष है।

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