तर्पण और पिंडदान कर पितरों को किया याद

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ऋषिकेश। पुरखों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए एक पखवाड़े तक चलने वाला पितृपक्ष बुधवार से शुरू हो गया है। पहले दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने गंगाघाटों पर पहुंचकर सपरिवार गंगा स्नान कर तर्पण किया। त्रिवेणीघाट पर सुबह से ही जलदान करके पितरों का तर्पण करने का सिलसिला चला। ज्योतिष डॉ. कैलाश घिल्डियाल बताते हैं कि पितरों और पूर्वजों को समर्पित पितृ पक्ष के दौरान तर्पण का विशेष महत्व है। इससे पूर्वजों की आत्मा को शांति और मुक्ति मिलती है। पितृपक्ष में संतान स्वर्गीय स्वजन के लिए श्राद्ध पूजन करते हैं। पितरों के श्राद्ध पूजन से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

गंगा तट पर विधिवत पूजन कर श्राद्ध करना श्रेयकर माना गया है, जो लोग गंगा तट पर नहीं जा सकते हैं वे सूर्य देवता का स्मरण करते हुए लोटे में जौ, तिल, अक्षत व सफेद पुष्प लेकर घर पर ही श्राद्ध कर्म करें। बुधवार को गंगा स्नान करने वालों का सुबह से ही घाटों पर पहुंचने का क्रम शुरू हो गया था। स्नान करने के बाद गंगा तट पर विधिवत कर्मकांड किया। मंत्रोच्चार के बीच अपने पितरों का आह्वान कर पिंडदान किया गया। पिंडदान के पूर्व लोगों ने पितरों के लिए तपर्ण भी किया। शहर सहित ग्रामीण क्षेत्रों के सभी गंगा घाटों पर पिंडदान किया गया। घाटों पर आचार्यों ने अपने जजमानों के लिए कर्मकांड कराया। पितृ पक्ष के दौरान बड़ी संख्या में लोग अपने पिता या पितरों की तिथियों पर बाल बनवा लेते हैं और ब्राह्मणों को भोज कराते हैं। जो लोग ऐसा नहीं कर पाते वह पितृ विसर्जन के दिन विधिवत तर्पण, पिंडदान के बाद श्राद्ध कर्म कराते हैं। इसके चलते आज घाटों पर चहल-पहल रही। आचार्य सुमन धस्माना बताते है कि बुधवार को त्रिवेणीघाट, लक्ष्मणझूलाघाट, स्वर्गाश्रम, रामझूला, शत्रुघन समेत तमाम घाटों पर पितरों को तर्पण दिया गया। दोपहर तक गंगाघाट पर पितरों को तर्पण देने के लिये लोगों की आवाजाही बनी रही।

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