रेलवे की भूमि से अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही से 4,365 काबिज अतिक्रमणकारियों के सिर पर मंडराया खतरा
दया जोशी
हल्द्वानी। रेलवे की करीब 31.87 हेक्टेयर भूमि पर 4,365 काबिज अतिक्रमणकारियों के खिलाफ माननीय उच्च न्यायालय के एक सप्ताह में नोटिस देने और तुरन्त अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही के आदेश से बनभूलपुरा के समस्त चिन्हित क्षेत्रों में बसे प्रभावितों में कड़कड़ाती ठंड में सिर से छत हटने का डर गहराता जा रहा है। अतिक्रमण का जिन्न सबसे पहले वर्ष 2007 में बाहर निकला था तब रेलवे ने डेढ़ से दो हजार अतिक्रमणों को ध्वस्त किया था। रेलवे स्टेशन के समीप रेलवे ने एक चाहरीदवारी भी बनाई थी। इसके बाद रेलवे की बनाई चाहरदीवारी के बाहर धीरे-धीरे लोगों का बसना शुरू हो गया। रेलवे चाहरदीवारी बना चुका था इसलिए लोगों का मानना था कि रेलवे की भूमि सिर्फ उस चाहरदीवारी तक ही सीमित है। फिर बाकी भूमि पर धड़ाधड़ गफूर बस्ती, ढोलक बस्ती समेत हजारों लोग बस गए।
नगर निगम ने हाउस टैक्स लेना शुरू किया तो बिजली, पानी की लाइनें बिछा दी गई। यहां काबिज लोगों के मतदाता पहचान पत्र बन गए। वर्ष 2016 में रेलवे भूमि अतिक्रमण का जिन्न फिर बाहर आया। रेलवे, पुलिस, प्रशासन ने अतिक्रमण चिन्हित किया। इसके विरोध में तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष स्व. इंदिरा हृदयेश और पूर्व सीएम हरीश रावत धरने पर बैठे थे। मामले ने राजनैतिक रंग ले लिया और मामला सुप्रीम कोर्ट चला गया था। तब तक रेलवे भी अतिक्रमित भूमि पर खंभे लगा चुका था।
वर्ष 2017 में रेलवे ने 4,365 अतिक्रमणकारियों को पीपीई एक्ट में नोटिस जारी हुए और आनन फानन में खलबली मच गई। वर्ष 2022 में विधानसभा चुनाव समाप्त होने के बाद हाईकोर्ट में लंबित याचिका पर सुनवाई हुई और अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए गये। तब प्रशासन ने रेलवे के साथ मिलकर अतिक्रमण हटाने के लिए योजना बनाई। परन्तु तब मामला एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और दूसरे पक्ष ने सुनवाई नहीं करने का आरोप लगाया था।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए हाई कोर्ट को अतिक्रमणकारियों को भी सुनने के आदेश दिये। तब से मामला कोर्ट में विचाराधीन था। इधर 21 दिसम्बर को हाईकोर्ट के आदेश के बाद पिछले 15 वर्षों से चली आ रही उहा पोह की स्थिति का पटाक्षेप हो गया। हालांकि हाईकोर्ट के आदेश मिलने के बाद ही रणनीति तैयार की जाएगी। उधर, अदालत का फैसला आने के बाद पुलिस- प्रशासन भी अपनी तैयारियां शुरू करने जा रहा है।
वहीं बनभूलपुरावासी मानवीय दृष्टिकोण का हवाला देते हुए कड़कड़ाती सर्दी के बीच बच्चों बुजुर्गों तथा महिलाओं के साथ अन्याय होने की दुहाई दे रहे हैं। वहीं रेलवे भूमि में सर्वे के दौरान चार स्कूल चिह्नित किए गए हैं। इनमें जीजीआईसी बनभूलपुरा जीआईसी बनभूलपुरा, प्राथमिक विद्यालय बनभूलपुरा, उच्च प्राथमिक विद्यालय बनभूलपुरा शामिल हैं। यदि अतिक्रमण के दौरान इन स्कूलों को तोड़ा जाता है तो इनमें पढ़ने वाले हजारों बच्चों को भारी दिक्कतों का सामना करना होगा। जहां एक और इनके सिर से छत तो हटेगी ही वहीं दूसरी ओर स्कूल टूटने पर इनके शिक्षा और ज्ञान से भी दूर चले जाने का खतरा स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर हो रहा है।
2022 के विधानसभा चुनाव में विधायक सुमित हृदयेश को इन क्षेत्रों में 14 हजार से अधिक वोट मिले थे, वहीं भाजपा एक हजार से भी कम वोट में सिमट गई थी। इससे पूर्व के चुनावों में भी इसी तरह के आंकड़े देखे गए। भविष्य में क्षेत्र के राजनीतिक समीकरण कैसे बनते हैं यह प्रभावित लोगों के विस्थापन पर भी निर्भर करेगा।
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संपादक – फास्ट न्यूज़ उत्तराखण्ड
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