उत्तराखण्ड हाईकोर्ट ने 500 से अधिक बेसिक हैल्थ वर्करों, सुपरवाइजरों को पुनरीक्षित वेतनमान देने का दिया आदेश-

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नैनीताल । उत्तराखण्ड हाईकोर्ट ने राज्य के 500 से अधिक बेसिक हैल्थ वर्करों, सुपरवाइजरों व हेल्थ असिस्टेंट को पुनरीक्षित वेतनमान देने का आदेश सरकार को दिया है। हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सरकार की अपील को खारिज करते हुए एकलपीठ द्वारा पूर्व में पारित फैसले को सही ठहराया है। सरकार ने एकलपीठ के फैसले को खण्डपीठ में चुनौती दी थी।


आपको बता दें कि यूपी सरकार 1996 में यूपी हैल्थ वर्कर एंव हैल्थ सुपरवाइजर एक्ट लाई थी जिसमें हैल्थ वर्करों को तीन वर्गों बेसिक हेल्थ वर्कर,सुपरवाइजर व असिस्टेंट वर्कर में बांटा गया था। एक्ट में वेतन विसंगति को लेकर 1983 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल हुई तो 11 मार्च 1988 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुनरीक्षित वेतनमान देने का आदेश दे दिया था इस आदेश के बाद यूपी सरकार ने 1996 में एक्ट बनाकर 23 जुलाई 1981 से पुनरीक्षित वेतनमान का आदेश जारी कर दिया। हांलाकि उत्तराखण्ड सरकार ने 16 जुलाई 2010 को शासनादेश जारी कर 23 जुलाई 1981 से 30 जून 2010 तक प्राकल्पिक आधार पर पुनरीक्षितवेतनमान का आदेश दे दिया। 16 जुलाई के शासनादेश को हाईकोर्ट में चुनौती मिली और इस आदेश को असंवैधानिक बताते हुए याचिका में कहा कि यूपी सरकार ने 1981 से दिया गया है। हांलाकि सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने वेतन विसंगति समिति को मामला भेजा और कहा कि याचिकाकर्ताओं के इस प्रकरण को देखें और निर्णय लें कोई फैसला नहीं होने पर हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल की गई।

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इसी बीच सरकार ने 23 अप्रैल 2013 में जीओ जारी कर 23 जुलाई 1981 से 30 अप्रैल 1995 तक वास्तविक रुप से वेतनमान का लाभ दे दिया और 1 मई 1995 से 30 जून 2010 तक प्राकल्पित आधार पर लाभ दिया गया। इस आदेश के खिलाफ पान सिह बिष्ट समेत 500 हैल्थ वर्करों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर 23 अप्रैल 2013 के शासनादेश को चुनौती दी। 11 अप्रैल 2017 को हाईकोर्ट एकलपीठ ने याचिकाओं को स्वीकार कर आदेश जारी कर कहा कि 1 मई 1995 से लेकर 8 नवम्बर 2000 तक समस्त एरियर अन्य लाभ यूपी सरकार देगी और 9 नवम्बर 2000 से लेकर 30 जून2010 उत्तराखण्ड सरकार को ये लाभ देना होगा। हांलाकि इस आदेश को उत्तराखण्ड और यूपी सरकार ने खण्डपीठ में चुनौती दी और उत्तराखण्ड सरकार ने कोर्ट में कहा कि अगर ऐसा करते हैं तो स्टेट पर 120 करोड़ का भार पड़ेगा कोर्ट ने सुनवाई के बाद उत्तराखण्ड सरकार की अपील को खारिज कर दिया है और एकलपीठ के आदेश पर मुहर लगा दी है। वहीं 2018 में पहले ही यूपी सरकार की अपीलों को भी कोर्ट खारिज कर चुका है।

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