हिंदू नव वर्ष पर विशेष कौन बनेगा राजा, कौन है मंत्री, किस राशि वाले की चमकेगी किस्मत,आइये जानते हैं
सनातन धर्म पर आधारित सभी संस्कार हिंदू नव वर्ष के विक्रम संवत से ही किए जाते हैं। विक्रम संवत का आरंभ आज से 2080 वर्ष पूर्व यानी ईस्वी सन् से 57 वर्ष पूर्व हुआ था। वर्तमान में इस वर्ष विक्रम संवत 2080 है। अर्थात विक्रम संवत 57 वर्ष ईसा पूर्व माना जाता है।
विक्रम संवत का पौराणिक महत्व
पुराणों के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ब्रह्मा ने सृष्टि निर्माण किया था इसलिए इस पावन तिथि को नव संवत्सर अथवा नव वर्ष के रूप में भी मनाया जाता है। मान्यता के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि के दिन प्रातः काल स्नानादि से शुद्ध होकर हाथ में गंध अक्षत पुष्प और जल लेकर ओम भूर्भुवः स्व: संवत्सर अधिपति आवाहयामि पूजयामि च इस मंत्र से नव संवत्सर की पूजा करनी चाहिए।
जिस प्रकार ईसाई नववर्ष हमारे देश में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है हिंदू नव वर्ष इससे और अधिक हर्षोल्लास के साथ मनाना चाहिए। विक्रम संवत अत्यंत प्राचीन संवत है। साथ ही साथ यह गणित की दृष्टि से अत्यंत सुगम और सर्वथा ठीक हिसाब रखकर निश्चित किए गए हैं। यहां के महीनों के नाम देवता मनुष्य संख्यावाचक कृत्रिम नाम नहीं है। यही बात तिथि तथा अंश दिनांक के संबंध में भी है। सूर्य चंद्र की गति पर आश्रित है। महीनों के नाम नक्षत्रों पर आधारित हैं जैसे चैत्र चित्रा नक्षत्र पर, वैशाख- विशाखा, जेष्ठ- जेष्ठा, आषाढ पूर्वाषाढा, श्रावण श्रवण नक्षत्र पर आधारित हैं। इसी प्रकार भादो या भाद्रपद पूर्वाभाद्रपद अश्विनी आश्विन कार्तिक कृतिका मार्गशीर्ष माह मृगशिरा पौष मास पुष्य नक्षत्र पर आधारित है। माघ मघा नक्षत्र पर आधारित है तथा फाल्गुन पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र पर आधारित है।
कैसे हुआ विक्रम संवत का प्रारम्भ
ऐसा माना जाता है कि जब विक्रम संवत प्रारंभ नहीं हुआ था तब युधिष्ठिर संवत कलयुग संवत और सप्त ऋषि संवत प्रचलित थे। हमारे सनातन धर्म में सप्त ऋषि संवत का प्रारंभ 3076 ईसवी पूर्व हुआ था। जबकि कलयुग संवत की शुरुआत 3102 ईसवी पूर्व हुई थी। इसी दौरान युधिष्ठिर संवत भी प्रारंभ हुआ था। इन सभी संवत्सर का प्रारंभ चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन से ही हुआ था विक्रम संवत में वार नक्षत्र और तिथियों का स्पष्टीकरण किया गया। इसमें पंचांग की बातों के साथ ही बृहस्पति वर्ष की गणना को भी शामिल किया गया था।
नवरात्रों में पंडित जी के श्री मुख से संवत्सर का नाम श्रवण करना ही महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा करने से अशुभ फलों का निवारण होता है।
कैसा रहेगा नव संवत्सर
आइए जानते हैं। इस बार दिनांक 22 मार्च 2023 से नव संवत्सर प्रारंभ होगा। इस बार नया संवत्सर “पिंगल” नामक संवत्सर है” पिंगल “नामक संवत्सर में शासक अपने बाहुबल से प्रतिद्वंद्वियों के बीच रहकर सुख भोग करेंगे। गाय भैंस तथा अन्य दुधारू पशुओं में रोग होने और खाद्यान्न एवं जल मध्यम रहेगा। जनमानस में भय और विरोध रहेगा। शासकों के सामने अचानक संकट आएंगे। चैत्र मास में खाद्यान्न महंगा तथा प्रजा में कष्ट। वैशाख आदि तीन मास में खाद्यान्न भाव सम रहेंगे और जनसंख्या में कमी होगी। वर्षा कम तथा खाद्यान्न व्यापार में लाभ होगा। भाद्रपद में खंड वृष्टि आश्विन में खाद्य भाव सम कार्तिक आदि 5 मास में विग्रह। खाद्यान्न महंगे तथा चौपाइयों में रोग एवं कष्ट।
अन्य मतानुसार टिड्डी दल तथा दैविक प्रकोप से जनमानस एवं किसानों को कष्ट होगा। जल व अन्न की कमी रहेगी शासक अपनी नीतियों के प्रभाव से शासन करेंगे। परंतु प्रतिद्वंद्वियों की वजह से अंदरूनी शत्रों से कष्ट होगा। सीमाओं पर शत्रु युद्ध से नुकसान करेंगे।
यदि मंत्रिमंडल की बात करें तो इस वर्ष राजा बुध एवं मंत्री शुक्रदेव हैं। इस वर्ष राजा मंत्री ने अपने पास कोई भी विभाग नहीं रखा है। सूर्य देव के पास सस्येश निरसेश(सूखे फल तथा मेवा) और धनेश, गुरुदेव के पास मेघेश(वर्षा प्रबंधन),फलेश(उद्यान एवं फल विभाग) और दुर्गेश (रक्षा विभाग) हैं। रसेश(रस पदार्थ) मंगल देव के पास तथा धान्येश शनिदेव के अधीन है। शुभ ग्रहों का प्रभाव अधिक होने से अशुभ फलों में न्यूनता आएगी। शासकों के न्याय पूर्वक शासन करने से सीमांत तक सबको बराबरी का अवसर मिलेगा। परंतु छल कपट अथवा धोखाधड़ी करने वालों का भी वर्चस्व बढ़ेगा। विप्र वर्ग को सम्मान और धार्मिक कार्यों के प्रति लोगों की श्रद्धा बढ़ेगी। गुप्त शत्रु एवं रोग बढ़ेंगे। सौंदर्य प्रसाधन सामग्री तथा वस्तुओं का बाजार में प्रचार व प्रसार बढ़ेगा। महंगाई की वजह से जनाक्रोश और शासक के विरुद्ध प्रदर्शन बढ़ेगा।
वर्ष एवं वर्षेश लगना अनुसार सीमाओं पर शत्रुओं द्वारा छिपकर हमला किया जा सकता है। राजनीतिज्ञों में परस्पर कलह और विरोध रहेगा। पूर्वी तथा दक्षिणी क्षेत्रों में प्राकृतिक एवं मानवीय प्रकोप से जनमानस का कष्ट बढ़ेगा। 3,6,9 तथा 12वें मास कष्टप्रद रहेंगे। शेष वर्ष शुभ फलप्रद रहेगा।
आइए जानते हैं संवत 2080 शाके 1945 का 12 राशियों का वार्षिक राशिफल
मेष–मेष राशि वालों के लिए वर्ष का उत्तरार्ध अच्छा रहेगा। अकारण मन में भय बना रहने से मानसिक अशांति हो सकती है। घर में धार्मिक अनुष्ठान होंगे । शत्रु स्वयं परास्त होंगे। विद्यार्थियों के लिए समय अनुकूल है। 3,6 तथा 11 वें मास अर्थात जेष्ठ भादो एवं माघ मास में कार्य सिद्धि होगी। गुरु एवं राहु का जप दान करने से अशुभ फलों में कमी आएगी।
वृषभ–वृषभ राशि वालों का वर्ष में व्यय अधिक होगा। यद्यपि आय के स्रोत भी बढ़ेंगे। संतान की ओर से शुभ समाचार मिलेंगे। स्वास्थ्य की दृष्टि से वर्ष शुभ रहेगा। भूमि मकान में विवाद होंगे। पुराने लंबित कार्य पूर्ण होंगे। वर्ष के 4, 7 तथा 12 वें मास में अर्थात आषाढ़ आश्विन एवं फाल्गुन मास में महत्वपूर्ण कार्य को सिद्ध कर लेने चाहिए। गुरु शनि एवं राहु के अशुभ फलों के निराकरण हेतु जप दान करना श्रेयस्कर होगा।
मिथुन—मिथुन राशि वालों का वर्ष मिश्रित फलदायक रहेगा। चल अचल संपत्ति खरीदने का योग बनेगा। वाणी और क्रोध पर नियंत्रण रखना आवश्यक है। साझेदारी में कार्य करना अच्छा रहेगा । दांपत्य जीवन अच्छा रहेगा। निरर्थक भ्रमण तथा व्यय प्रायः होता रहेगा। वर्ष के 1,5 एवं आठवें माह अर्थात चैत्र सावन एवं कार्तिक मास शुभ फल प्रद रहेंगे। अशुभ फल परिहारर्थ शनि और केतु का जप दान करें।
कर्क—कर्क राशि वालों को शनि की ढैया का प्रभाव रहेगा। मानसिक एवं शारीरिक कष्ट होगा। संतान की चिंता बनी रहेगी। चल अचल संपत्ति में विवाद हो सकता है। नए कार्यों में व्यवधान उत्पन्न होंगे। 2,6 और आठवें मास में अर्थात वैशाख भादू एवं कार्तिक मास में महत्वपूर्ण कार्यों को सिद्ध करने का प्रयास करें। गुरु शनि राहु केतु का निराकरण तथा हनुमान जी की आराधना से अशुभ फलों में न्यूनता आएगी।
सिंह—सिंह राशि वालों का वर्ष मिश्रित फलदायक रहेगा। गुरु के राशि परिवर्तन के बाद से रुके हुए धन की प्राप्ति होगी। यश कीर्ति में वृद्धि होगी। सुख संसाधनों में धन व्यय होगा। दांपत्य जीवन में व्यवधान उत्पन्न होंगे। 3,7 और दसवें मास अर्थात जेष्ठ आश्विन एवं पौष मास में शुभ फलदायक होंगे। अशुभ फलों में न्यूनता के लिए शिव आराधना तथा शनि एवं राहु जप दान करना चाहिए।
कन्या—कन्या राशि वालों का यह वर्ष चुनौतीपूर्ण है। जहां एक और सुख संसाधनों में वृद्धि होगी वही छोटी सी भूल से कोई बड़ा खतरा भी उत्पन्न हो सकता है। अतः सावधानी अपेक्षित है। मित्र वर्ग से बहुत संभल कर बात करें विश्वासघात हो सकता है। 4 ,8 और 11 वें मास शुभ फल प्रद रहेंगे। अशुभ फल परिहार्थ शनि एवं राहु का दान और हनुमान जी की आराधना श्रेष्ठ कर रहेगा।
तुला—तुला राशि वालों का वर्ष मिश्रित फलदायक है। सम्मान और यश कीर्ति बढ़ेगी। नई नई योजनाएं फलीभूत होंगी। दांपत्य जीवन में परेशानियां आएंगी। संतान की तरफ से शुभ समाचार बड़ी मुश्किल से मिलेंगे । न्यायालय में जाने से बचने का प्रयत्न करें। 5, 9 तथा 12वें मास में महत्वपूर्ण कार्य सिद्ध करें। शनि राहु तथा केतु के अशुभ फल निराकरण के लिए हनुमान जी की आराधना करना अच्छा रहेगा।
वृश्चिक—वृश्चिक राशि वालों का वर्ष चतुर्थ शनि से प्रभावित रहेगा। किसी प्रियजन से दूर होने से कष्ट मिलेगा। मकान या भूमि में निवेश करना शुभ रहेगा। प्रतिस्पर्धी प्रभावी रहेंगे। अकारण भय और चिंता बनी रहेगी। आय के स्रोत बाधित रहेंगे। वर्ष में महत्वपूर्ण कार्यों को 1, 6 तथा 10 वें मास में पूर्ण करने का प्रयास करें। अशुभ फलों का निराकरण करने हेतु गुरु शनि एवं केतु का जप दान करना चाहिए।
धनु—धनु राशि वालों का वर्ष शुभ फलदायक रहेगा। संतान की ओर से शुभ समाचार मिलेंगे। लंबे समय से रुके धन की प्राप्ति होगी। धना गम के नए स्रोत भी मिलेंगे। घर में मंगल कार्य संपन्न होंगे। मित्रों से सचेत रहने की जरूरत है। वर्ष के 2, 7 और 11वें मास में जरूरी कार्यों को पूरा करने का प्रयास करें। अशुभ फल निराकरण के लिए राहु का जप दान एवं हनुमान जी की आराधना करना श्रेयस्कर है।
मकर—मकर राशि वाले शनि की साढ़ेसाती के प्रभाव से प्रभावित रहेंगे। स्वास्थ्य की दृष्टि से वर्ष सामान्य फलदायक सिद्ध होगा। स्थानांतरण के वजह से पारिवारिक उलझनें बढ़ेंगी। भूमि अथवा भवन निर्माण कार्य करना फलीभूत रहेगा। संतान पक्ष से उलझने बढ़ेंगी। अकारण मानसिक कष्ट होगा। 3, 8 और 12 वें मास में महत्वपूर्ण कार्यों को सिद्ध कर लें। गुरु शनि राहु व केतु के अशुभ फल के निराकरण हेतु हनुमान जी की आराधना तथा जप दान हितकर रहेगा
कुंभ —-कुंभ राशि वालों का संपूर्ण वर्ष शनि के प्रभाव में रहेगा। संघर्ष के बाद भी कार्य सिद्धि में बाधाएं स्वत:उत्पन्न होंगी एवं आय के स्रोत भी संकुचित होंगे। अपने परिजनों से दूरी बढ़ जाएगी। आर्थिक मानसिक और शारीरिक कष्ट का समय रहेगा। 1 ,4 तथा नौवें मास में शुभ फलप्रद रहेंगे अशुभ फल के परिहार गुरु शनि एवं केतु का जपदान तथा शिव आराधना श्रेयस्कर रहेगा।
मीन—मीन राशि वालों को शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव शुरू हो जाएगा। अकारण अपनो से दूरियां बढ़ने लगेगी। मानसिक और शारीरिक कष्ट होगा। भूमि वाहन अथवा भवन आदि में निवेश अच्छा रहेगा। किसी भी प्रकार के साझे के कार्य में निवेश करना परेशानी का कारण बन सकता है। विद्यार्थियों को संघर्ष के उपरांत सफलता अवश्य मिलेगी। 2, 5 और दसवें मास में महत्वपूर्ण कार्य को सिद्ध करें। शनि राहु तथा केतु का जप दान और हनुमान जी की आराधना से अशुभ फलों में न्यूनता आएगी।
12 राशियों का नव वर्ष की आय एवं व्यय—-
मेष–आय-5, व्यय-5,फल-लाभ।
वृषभ- आय 14 व्यय11फलहानि।
मिथुन- आय-2,व्यय-11फलरोग।
कर्क-आय-11व्यय 8 फल सुख।
सिंह-आय14,व्यय-2 फल विजय।
कन्या आय-2 व्यय 11,फल-रोग,
तुला आय14 व्यय11फल हानि
विश्चिक आय5व्यय5फल लाभ।
धनु आय8व्यय11फलसुख।
मकर आय11व्यय5फल विजय।
कुंभ आय11व्यय5फलविजय।
मीन आय8व्यय11फल सुख।
विश्वत संक्रांति का फल–किन राशियों के बाएं पैर में गई है विश्वत संक्रांति, आइए जानते हैं
विशाखा अनुराधा जेष्ठा मूल पूर्वाषाढ़ा उत्तराषाढ़ा एवं श्रवण नक्षत्र के शीर्ष में विश्व संक्रांति गई है।
हस्त चित्रा स्वाती इन 3 नक्षत्रों के मुख में विश्वत संक्रांति है।
पुष्य अश्लेषा मघा पूर्वाफाल्गुनी एवं उत्तराफाल्गुनी इन 5 नक्षत्रों के हृदय में विश्वत सक्रांति है।
मृगशिरा आर्द्रा और पुनर्वसु इन 3 नक्षत्रों के दाहिने हाथ में विश्वत संक्रांति है। भरणी कृतिका रोहिणी इन 3 नक्षत्रों के बाएं हाथ में विश्वत संक्रांति है।
उत्तराभाद्रपद रेवती और अश्वनी इन 3 नक्षत्रों के दाहिने पैर में विश्वत संक्रांति है।
धनिष्ठा शतभिषा पूर्वाभाद्रपद इन 3 नक्षत्रों के बाएं पैर में इस वर्ष विश्व सक्रांति है।
इसका फल निम्न प्रकार से है-
विश्वत संक्रांति यदि शीर्ष के 7 नक्षत्रों में है तू यश प्राप्ति। मोर के तीन में है तो विद्या उन्नति हृदय के पास नक्षत्रों में है तो धन लाभ दाहिने हाथ के तीन में है तो दांपत्य सुख बाएं हाथ के तीन में है तो अर्था भाव दाहिने पैर के तीन में निरर्थक भ्रमण तथा बाएं पैर के 3 में रोग आदि फल उस वर्ष के लिए प्रभावी रहता है। अशुभ फल निवारण हेतु विश्वक संक्रांति के दिन दानार्चन श्रेयस्कर रहता है। इस बार यहां मकर कुंभ और मीन राशि के कुछ जातकों में विश्वत संक्रांति बाएं पैर में है अतः इन राशि के जातकों को विश्वत संक्रांति के दिन चांदी के बाएं पैर की आकृति सहित चावल सफेद वस्त्र दही एवं चीनी दान करनी चाहिए।
ग्रहण विवरण—इस बार संवत 2080 में संपूर्ण पृथ्वी पर 4 ग्रहण लगेंगे। परंतु संपूर्ण भारत में केवल एक ग्रहण ही दिखाई देगा जोकि खंडग्रास चंद्रग्रहण 28 एवं 29 अक्टूबर की मध्य रात्रि 2023 आश्विन शुक्ल पक्ष पूर्णमासी को लगेगा। जिसका स्पर्श काल मध्य रात्रि 1:05 मध्यकाल रात्रि 1:44 बजे एवं मोक्ष रात्रि 2:23 बजे होगा।
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संपादक – फास्ट न्यूज़ उत्तराखण्ड
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