प्रत्याशियों को भाजपा की कल्याणकारी नीतियों से नहीं है कोई सरोकार, हवा हवाई चुनावी प्रचार में भाजपा के रणबांकुरे
दया जोशी
हल्द्वानी। उत्तराखण्ड में निकाय चुनाव की रणभेदी बजने के बाद सभी राजनीतिक दल समेत निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनाव प्रचार तेज कर दिया है। उत्तराखण्ड में 100 नगर निकायों में आगामी 23 जनवरी को मतदान होना है। वर्ष 2018 में 25 लाख से अधिक मतदाता थे जबकि वर्तमान में यह सख्या बढ़कर 30 लाख से अधिक हो चुकी है। उत्तराखण्ड के 11 नगर निगमों में 540 पार्षदों के पद है जबकि प्रदेश की 46 नगर पचायतो में 298 वार्ड सदस्य है। इसी प्रकार 43 नगर पालिका क्षेत्र में 444 सभासदों का चुनाव होना है। जैसे जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है. दोनों प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस सक्रीय होते जा रहे है। दोनों पार्टियों ने अपने अपने स्टार प्रचारको की टीम को अपने प्रत्याशी के पक्ष में तूफानी चुनाव प्रचार करने के लिये मैदान में उतार दिया है। जो आगामी 21 जनवरी तक निकायों में मोर्चा संभालेंगे।
उत्तराखण्ड की राजनीति का भविष्य निकाय चुनावों की जीत और हार पर निर्भर है। दोनों प्रमुख पार्टियों ने आगामी विधानसभा चुनाव को दृष्टिगत रखते हुए मजबूत से मजबूत प्रत्याशियों को मैदान में उतार दिया है। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस निकाय चुनाव में अधिक से अधिक सीटों को जीतकर सत्ता में वापसी के लिए कोई भी कसर नहीं छोड़ना चाहती। वही सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनाव में एकतरफा पाँचो ससदीय सीटों को जीतने के बाद पूरे जोश के साथ निकाय चुनावों में पूरी ताकत के साथ जनता के बीच प्रत्याशियों को उत्तार चुकी है। यदि जानकारों की माने तो भारतीय जनता पार्टी की वर्तमान निकाय चुनाव में रणनीति को कार्यकर्ता और प्रत्याशी पलीता लगाने पर तुले है। भाजपा सरकार और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी निकाय चुनावों में जीत हासिल करने के लिये पूरी ताकत के साथ पार्टी की जनकल्याणकारी नीतियों और विकास कार्यों को लेकर चुनावी रणभूमि में उतर गये हैं। परन्तु पार्टी के काम और पार्टी की आवाज जनता के बीच पहुंच रही है या नहीं, यह चुनाव से पहले ही निश्चित हो गया है। पार्टी की यह नाकामी चुनाव से पूर्व ही जनता के बीच पहुंच चुकी है। जिस प्रकार भाजपा की रणनीति निचले स्तर पर असफल होती प्रतीत हो रही है उससे तो यही महसूस हो रहा है कि भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी प्रारम्भिक दौड के चुनाव प्रचार में विपक्षी दल से पिछड़ने लगे हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने प्रत्याशियों को चुनावी रण में उतार तो दिया है। परन्तु प्रत्याशियों के पास ना तो मीडिया मैनेजमैंट है और ना ही स्थानीय चुनावी रणनीति। स्थिति यह है कि भाजपा प्रत्याशी प्रदेश सरकार की जनहितकारी नीतियों एवं विकास कार्यों को लेकर जनता के बीच उतर ही नही पा रहे है। गजब की बात यह है कि प्रत्याशियों को जनता को वोट में बदलना ही नहीं आ रहा है, प्रत्याशी मतदाता को लुभाने में पूरी तरह फेल हो रहे है। प्रत्याशी बिना किसी रणनीति के मात्र गल्ली मोहल्लों में हाथ जोड़कर मतदाताओं से मात्र याचना करते नजर आ रहे है। उनके पास ना तो चुनावी रणनीति है, ना चुनावी रणनीतिकार, ना मीडिया मैंनेजमैंट और ना ही जीत की तरफ फोकस। अब देखना यह है कि मुख्यमत्री पुष्कर सिंह धामी और भाजपा सरकार ऐसे में किस प्रकार जनता को अपने पक्ष में मत में बदल पायेगी।
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संपादक – फास्ट न्यूज़ उत्तराखण्ड
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