एक राष्ट्र, एक चुनाव पर आगे बढ़ेगी बात, 23 सितंबर को समिति की पहली बैठक

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नई दिल्ली। पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने शनिवार को बताया कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ समिति की पहली बैठक 23 सितंबर को होगी। बता दें कि केंद्र की मोदी सरकार ने दो सितंबर को लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, नगर पालिकाओं और पंचायतों के एक साथ चुनाव कराने की संभावना पर गौर करने और सिफारिश करने के लिए आठ सदस्यीय समिति को अधिसूचित किया था। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को इस उच्च स्तरीय समिति का प्रमुख नियुक्त किया गया था।


कोविंद ने शनिवार को यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘पहली बैठक 23 सितंबर को होगी।’’ वह एक निजी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में भाग लेने के लिए भुवनेश्वर में थे। समिति एक साथ चुनावों के लिए संभावित परिदृश्यों का विश्लेषण करेगी और सिफारिश करेगी जैसे त्रिशंकु विधानसभा या अविश्वास प्रस्ताव को अपनाना और एक रूपरेखा बनाना। साथ ही यह उस समय सीमा का सुझाव देगी जिसके भीतर चुनाव कराए जा सकते हैं।

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समिति में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस के लोकसभा नेता अधीर रंजन चौधरी, पूर्व नेता प्रतिपक्ष राज्यसभा गुलाम नबी आजाद, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, पूर्व लोकसभा महासचिव सुभाष कश्यप, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी, और राज्य मंत्री (कानून) अर्जुन राम मेघवाल शामिल हैं। मेघवाल विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में बैठकों में भाग लेंगे। हालांकि, अधीर चौधरी ने ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ पैनल का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया।

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‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ क्या है?
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को लेकर चर्चा तब शुरू हुई जब केंद्र सरकार ने बिना एजेंडा कारण बताए 18 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाया। गौरतलब है कि 1967 तक देश में विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव एक साथ होते थे। हालांकि, 1968 और 1969 में, कुछ विधान सभाएं भंग कर दी गईं, और 1970 में, लोकसभा भंग कर दी गई – जिससे चुनावी कार्यक्रम में बदलाव आया। जब से मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, तब से वह लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के विचार पर जोर दे रहे हैं। 2017 में, तत्कालीन राष्ट्रपति कोविंद ने भी इस विचार के प्रति अपना समर्थन जताया था। 2018 में संसद में अपने संबोधन के दौरान, कोविंद ने कहा था कि बार-बार चुनाव न केवल मानव संसाधनों पर भारी बोझ डालते हैं, बल्कि आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण विकास प्रक्रिया भी बाधित होती है।

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