सुप्रीम कोर्ट की राष्ट्रपति को लेकर टिप्पणी, कहा- लंबित विधेयकों पर 3 महीने में लें फैसला


नईदिल्ली। कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को राज्यपाल द्वारा लंबित रखे जाने पर सख्त नाराजगी जाहिर की थी। अब कोर्ट ने इस संबंध में राष्ट्रपति को लेकर भी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा विचार के लिए भेजे गए विधेयकों पर 3 महीने की भीतर फैसला लेना होगा। अगर इससे ज्यादा देरी होती है तो राज्य को इसका कारण भी बताना होगा।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने कहा, यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि न्यायालय ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करने में शक्तिहीन नहीं होंगे, जहां संवैधानिक प्राधिकारी द्वारा कार्य का निष्पादन उचित समय के भीतर नहीं किया जा रहा है। राज्यपाल राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयक सुरक्षित रखता है और राष्ट्रपति उस पर अपनी सहमति रोक लेता है तो राज्य सरकार के लिए इस न्यायालय के समक्ष ऐसी कार्रवाई का विरोध करने का विकल्प होगा।
राज्यों को उन संवैधानिक प्रावधानों पर कानून पेश करने से पहले केंद्र से परामर्श करना चाहिए, जहां राष्ट्रपति की सहमति की जरूरत हो सकती है। केंद्र को राज्य सरकारों द्वारा भेजे गए विधायी प्रस्तावों पर उचित सम्मान और तत्परता से विचार करना चाहिए।
राज्यों से अपेक्षा की जाती है कि वे सहयोगात्मक बनें और केंद्र द्वारा दिए गए सुझावों पर शीघ्रता से विचार करें। कोर्ट ने सरकरिया आयोग का भी जिक्र किया, जिसने समयसीमा निर्धारित करने का सुझाव दिया था।
सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला ऐतिहासिक है, क्योंकि ये पहली बार है जब कोर्ट ने राष्ट्रपति के लिए इस तरह की समय सीमा निर्धारित की है।
यहां तक कि संविधान के अनुच्छेद 201 में भी राष्ट्रपति के लिए किसी समय सीमा का जिक्र नहीं है। इसमें कहा गया है कि अगर राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजते हैं तो वे उसे मंजूरी दे सकते हैं ये अस्वीकार कर सकते हैं, लेकिन इसकी कोई समय सीमा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि द्वारा 10 विधेयकों को मंजूरी न देने के मामले पर आया है।
दरअसल, तमिलनाडु सरकार ने याचिका दायर कर रहा था कि राज्यपाल ने 10 विधेयकों को बेवजह लंबे समय से लंबित रख रखा है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने राज्यपाल को फटकार लगाते हुए एक महीने के भीतर विधेयकों को मंजूरी देने को कहा था। कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल के पास कोई वीटो पॉवर नहीं है। दरअसल, राज्यपाल रवि ने तमिलनाडु सरकार द्वारा पारित 12 में से 10 विधेयकों को बिना कारण बताए लौटा दिया था और 2 को राष्ट्रपति के पास भेज दिया था।
इसके बाद तमिलनाडु विधानसभा ने लौटाए गए 10 विधेयकों को दोबारा पारित कर फिर राज्यपाल के पास भेजा था। राज्यपाल ने इन विधेयकों को फिर भी पारित नहीं किया था। इससे पहले भी ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था और तब भी कोर्ट ने राज्यपाल को फटकार लगाई थी।



सबसे पहले ख़बरें पाने के लिए -
👉 फ़ास्ट न्यूज़ के WhatsApp ग्रुप से जुड़ें
👉 फ़ास्ट न्यूज़ के फ़ेसबुक पेज़ को लाइक करें
👉 कृपया नवीनतम समाचारों से अवगत कराएं WhatsApp 9412034119
संपादक – फास्ट न्यूज़ उत्तराखण्ड
www.fastnewsuttarakhand.com